कविता: जॉम्बी

जब तुम सुनते हो
केवल अपने मन की बात
दिन रात
छद्म[1] प्रचार-मचानों पर
कैटवॉक करते शातिर विचार-पुंज![2]
कथा-वृत्त[3], प्रति कथा-वृत्त
उतर जाते हैं
तुम्हारे दिलो-दिमाग में
फैल जाते हैं नस-नस में
घुल जाते हैं खून में
तुम नहीं सुन पाते!
चक्रवत पसरी रेंगती दरिद्रता
महसूस नहीं कर पाते
नस्लवाद, जातिवाद संतप्त[4]
रूहों की घुटन!
उद्वाचन[5] नहीं कर पाते
बेरोजगारी, मंहगाई, घोटाले
भ्रष्टाचार
धार्मिक उन्माद
शासकीय बहरापन, राजसी हठधर्मिता![6]
तुम नहीं देख पाते
दिन दहाङे लुटते-नुचते तन-बदन
धधकती इमारतें
पलभर में भस्मीभूत
जीवन-पर्यंत संचित सपने!
तुम महसूस नहीं कर पाते
जिंदा जलते
इंसानी जिस्मों की गंध
और नहीं सुन पाते
शरणार्थी शिविरों से उठती सिसकियाँ!
खङी है जस्टीसिया[7]
खुले नैत्र, बंद दृष्टि, मूक जबान
तलवार है परंतु धार नहीं
पलङे दोनों तराजू के, समभार नहीं
कर सके निर्णय ठोस, वह विवेकाधिकार नहीं!
और
क्योंकि तुम सुनते हो
केवल और केवल अपने मन की बात
तो! ऐसा कौनसा पहाङ टूट पङा
जॉम्बी[8] के ड्राईंगरूम में
सब न्यायोचित है!
(c) दयाराम वर्मा, जयपुर
[1] छद्म: मिथ्या-झूठे
[2] विचार-पुंज: मन में उठने वाली बातों या भावनाओं का समूह
[3] कथावृत्त- नेरेटिव्ज, प्रति कथा-वृत्त: एंटी नेरेटिव्ज
[4] संतप्त: (से) उदास, दुखी
[5] उद्वाचन: सांकेतिक शब्दों का अर्थ समझना
[6] हठधर्मिता: कट्टरता
[7] जस्टीसिया: प्राचीन रोम में न्याय की देवी को जस्टीसिया कहा गया है, जिनके एक हाथ में तराजू, दूसरे में दुधारी तलवार है और आंखों पर पट्टी बंधी होती है.
[8]जॉम्बी: एक मृत व्यक्ति के पुनर्जीवन के माध्यम से निर्मित एक (काल्पनिक) भूत-प्रेत, जिसमें इंसान जैसी संवेदनाएं नहीं होती
प्रकाशन विवरण;
(1) सत्य की मशाल (जून, 2024)
(2) भोपाल से प्रकाशित होने वाली मासिक हिंदी साहित्यिक पत्रिका- अक्षरा के अप्रैल, 2025 के अंक में 'कलम की अभिलाषा' और तीन अन्य कविताओं के साथ प्रकाशित
(3) राजस्थान साहित्य अकादमी की मुख पत्रिका मधुमती के दिसंबर-2024 के अंक में 6 अन्य कविताओं के साथ प्रकाशन