कविता: मेरे चले जाने के बाद




मेरे चले जाने के बाद
बिना जाँच-बिना कमेटी
किया निलंबित आरोपी प्रोफ़ेसर-तत्काल
करेंगे हर संभव सहयोग-कह रहे थे
विभागाध्यक्ष देवीलाल!


मेरे चले जाने के बाद
पहुँच गए विधायक सीधे एसपी के दफ़्तर
लिए संग अपना लाव-लश्कर
“करो कार्रवाई अतिशीघ्र, दिलवाना होगा बेटी को इंसाफ
जो भी हैं सहयोगी-करना नहीं उनको भी माफ़”!


मेरे चले जाने के बाद
किया तुरंत दर्ज केस दरोगा ने
बिना सिफ़ारिश-बिना रिश्वत-बिना टेढ़े सवाल
धर लिया आनन-फानन अभियुक्त
दिखलाया पुलसिया ज़ोर-ज़बर[1] कमाल!


मेरे चले जाने के बाद
मानवतावादी संगठन भी पहुँच गए
पहुँच गए सोशल वर्कर, मीडियाकर्मी और पत्रकार
“नहीं सहेंगे अनाचार-अत्याचार, सुन लो बहरी सरकार!”
हुई उत्तेजित भीङ, भरने लगी हुंकार!


मेरे चले जाने के बाद
जाना कि मामला था बड़ा संगीन
दोस्त-संबंधी थे शोकाकुल अति गमगीन
जुट गया समाज, हुआ लामबंद गली-मोहल्ला
“करेंगे हम प्रतिकार!” चिल्लाकर चाचा चंदू बोला!


मेरे चले जाने के बाद
हेडलाइंस बटोर रही थीं टीआरपी
चला रहे थे मीडिया-ब्रेकिंग न्यूज़ बारंबार
सज रही थीं प्राइम बहसें-बेशुमार
कर रहे थे वक्ता-बक्ता, व्यवस्था पर तीखे प्रहार!


मेरे चले जाने के बाद
करुणा, वेदना और संवेदना ने दी दस्तक
आ पहुँची सांत्वना, आशा, दिलासा-मेरे बाबुल के द्वार
फ़र्ज़-शऊर[2] ने खोली बंद पलकें इस बार
कानून भी उठ गया नींद से-था जो गफलत[3] में बेज़ार[4]!


© दयाराम वर्मा जयपुर (राज.) 18 जुलाई, 2025

[1] ज़ोर-ज़बर-बलपूर्वक नियंत्रण करना
[2] फ़र्ज़ शऊर-कर्तव्य बोध
[3] गफलत-उपेक्षा, लापरवाही, अनदेखी
[4] बेज़ार-उबा हुआ, अरुचि या विरक्ति से भरा


प्रकाशन विवरण 

सत्य की मशाल- भोपाल (मासिक साहित्यिक पत्रिका) अगस्त, 2025





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