कविता: सवालों की मौत




बहुत नागवार है उसे
हर तनी हुई मुट्ठी, हर दुस्साहसी नज़र
हर स्वावलंबी कशेरुका-दंड
अभिव्यक्ति की हर एक आवाज़
सवालों को पोषती हर एक अभिव्यंजना!

वह चाहता है
अपने सम्मुख सदैव फैले हुए याचक
या जयघोष में उठे हाथ
दृष्टि विहीन नमित आंखें और
झुकी हुई फ़रमाँ-बरदार मेरुदण्ड!

वह जानता है
उलझा देना सवाल को सवाल से
कथनी करनी और मुद्दों पर तथ्यपरक
सवालों की घेराबंदी को
बेधना तोड़ना मरोड़ना और अंततः
ढाल लेना अपने अनुकूल!

वह अमन पसंद है
नहीं चाहता कुनमुनाते भुनभुनाते
टेढ़े-मेढ़े पङे या खङे सवाल
असहज भूखे-नंगे वृत्तिहीन रेंगते सवाल
और
सङक पर चीखते चिल्लाते!
तो कतई नहीं

और अब
उसका मूक उद्घोष है
इससे पहले की कोई अनचाहा सवाल
अवतरित हो किसी गर्भ से
गर्भपात हो!
या हो प्रसूता की अकाल मृत्यु!
उसे विश्वास हो चला है
दैवीय शक्ति से लैस परमेश्वर वही है


@ दयाराम वर्मा जयपुर 31.03.2024




कशेरुका-दंड: रीढ़ की हड्डी
अभिव्यंजना: अभिव्यक्ति
फ़रमाँ-बरदार: आज्ञाकारी, आज्ञा-पालक, ताबेदार
शिरोधरा: ग्रीवा, गर्दन

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