कविता: मनमौजी



राज सिंहासन का
है बङा गजब इकबाल
छल कपट से वोट झपट के
आँख दिखा के लाल!

जो विराजते इस गद्दी पर
बल-बुद्धि माया से
हो जाते मालामाल!

हरखू परखू घुग्गी या हो दौला
मनमौजी भी बन बैठता
हरफनमौला[1]!

खिलाफत में जो बोले
हल्का सा कभी मुँह भी खोले
कलम उसकी कहलाती
दुश्मन प्रायोजित औजार!

विरोधी सुर-स्वर-अक्षर
गुनगुनाने-सुनने-लिखने वाले
समझाते मनमौजी
हैं जयचंद देश के गद्दार!

हो जाए गरचे अपराध
प्रतिकारी प्रतिपक्षी के हाथों
ध्यान-विधान विशेष दिया जाता
घर है अवैध
प्रथम दृष्टया जान लिया जाता!

बिना अपील बिना दलील
सबल-मनमौजी
चपल-बुलडोजर न्याय दिलाता!

सङकों पर जब होते
धरने अनशन विरोध प्रदर्शन
हो जाते दंगे फ़साद
कोई मांगे अभिव्यक्ति की आजादी
मीडिया बोले करते जेहाद!

आंदोलनजीवी या अर्बन नक्सल
जुट जाते लोग चुनिंदा
करे संशय मनमौजी
शामिल इनमें साज़िश-कुनिंदा[2]!



© दयाराम वर्मा, जयपुर (राज.)-10 अगस्त, 2024




[1] हरफनमौला- हर क्षेत्र का जानकार व्यक्ति; अनेक विद्याओं का ज्ञाता और आविष्कारक
[2] साज़िश-कुनिंदा- षड्यंत्री, कुचक्री, साजिश रचने वाला

1 टिप्पणी:

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