कविता: किसान और होमो सेपियंस



बारह हजार वर्ष पूर्व
सर्वप्रथम, एक शिकारी वानर ने खोजा था अनाज
धरती का पहला किसान
उसने सिखाया साथी शिकारी घुमंतुओं को
घर-परिवार बनाना, बस्ती बसाना
वे कहलाए होमो सेपियंस[1]
और किसान
उगाता रहा फसल, रोपता रहा धान!

फलने फूलने लगे
गांव, देहात, कस्बे, शहर और साम्राज्य
विकसित होते गए
मेसोपोटामिया, मिश्र, चीन, सिंधु, हङप्पा
जबकि किसान
उगाता रहा फसल, रोपता रहा धान!

धीरे-धीरे सीखा होमो सेपियंस ने
व्यापार और व्यवहार
अहिंसा, सदभाव, भलाई, प्रेम और सदाचार
समाज और सामाजिकता
धर्म और धार्मिकता
लेकिन किसान
उगाता रहा फसल, रोपता रहा धान!

होमो सेपियंस ने सीखा
पढ़ना, लिखना
ज्ञान-विज्ञान, संगीत, कला और संस्कृति
रचा डाले उसने
पिरामिड, बेबिलोन, ताजमहल, खजुराहो
तब भी किसान
उगाता रहा फसल, रोपता रहा धान!



होने लगे पैदा
होमो सेपियंस नेता, इंजीनियर, सिपाही, विचारक
मुंसिफ़, हकीम, सैनिक, समाज-सुधारक
और किसान
उगाता रहा फसल, रोपता रहा धान!

होमो सेपियंस ने जाना
संगठन और एकता की शक्ति को और लङना
दमन, शोषण, अत्याचार के खिलाफ
और मिटा डाली
राजशाही, तानाशाही, औपनिवेशिक हुकूमतें
वह परखता गया
जनतंत्र, संघवाद, साम्यवाद, समाजवाद
जबकि किसान
उगाता रहा फसल, रोपता रहा धान!

सहस्राब्दियां बीत गईं
एक दिन
सभ्यता के अंतिम पायदान पर खङा किसान
चिल्लाया, होमो सेपियंस!
मैं भी बनना चाहता हूँ तुम्हारी तरह!

गूँजने लगी उसकी पुकार
लेकिन शायद किसी को नहीं था उससे सरोकार
किया निश्चय तब उसने थक-हार
बतलाई जाए होमो सेपियंस को अपनी व्यथा
निकले हल कोई, सुधरे थोङी दशा!

लेकिन उसके पाँव वहीं रुक गए
जब देखा उसने
राजमार्ग पर सघन कंटीली तारबंदी
और भारी भरकम बहुस्तरीय बेरिकेड के बीच
दूर तक लपलपाती
डरावनी नोकदार कीलें!

और देखा
अट्टहास करता होमो सेपियंस
जो उगा रहा था कांटे, रोप रहा था व्यवधान!


[1] सेपियंस-मानवजाति का संक्षिप्त इतिहास लेखक युवाल नोआ हरारी
 
@ दयाराम वर्मा बेंगलुरु 13.02.24

Images- Courtesy -Al Jazeera 21.02.2021








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