कविता: प्रकृति चले हमारे अनुकूल
.jpg)
उन्हें सालता है सप्तवर्णीय इंद्रधनुष
क्यों नहीं बिखेरता फ़लक पर
सुर्ख़ कैफ़ियत केवल एक!
क्यों होते पल्लवित उपवन में पुष्प अनेक
खिलता नहीं क्यों केवल एक
खुशबू एक रंग एक!
पसंद नहीं उन्हें झील का झील होना
परखते हैं अक्सर कंकर फेंककर
अनुप्रस्थ तरंगों की ताकत!
नहीं गवारा नदी का सादगी भरा प्रवाह
लिपट जाती हैं निचली बस्ती में
छिछले नालों से!
क्यों आता जाता है सूरज सरहदों के पार
बांटता है दुशमन देश को भी
धूप रोशनी अपार!
क्यों बहती हैं हवाएं दशों दिशाओं में
क्यों नहीं बरसते बादल यहीं
उन्हें शिकायत है!
उन्हें पूरा यकीन है विधाता ने की है भारी भूल
क्योंकि कायनात में हम हैं सर्वश्रेष्ठ
प्रकृति चले हमारे अनुकूल!
@ दयाराम वर्मा बेंगलुरु 17.02.2024
सुर्ख़ कैफ़ियत केवल एक!
क्यों होते पल्लवित उपवन में पुष्प अनेक
खिलता नहीं क्यों केवल एक
खुशबू एक रंग एक!
पसंद नहीं उन्हें झील का झील होना
परखते हैं अक्सर कंकर फेंककर
अनुप्रस्थ तरंगों की ताकत!
नहीं गवारा नदी का सादगी भरा प्रवाह
लिपट जाती हैं निचली बस्ती में
छिछले नालों से!
क्यों आता जाता है सूरज सरहदों के पार
बांटता है दुशमन देश को भी
धूप रोशनी अपार!
क्यों बहती हैं हवाएं दशों दिशाओं में
क्यों नहीं बरसते बादल यहीं
उन्हें शिकायत है!
उन्हें पूरा यकीन है विधाता ने की है भारी भूल
क्योंकि कायनात में हम हैं सर्वश्रेष्ठ
प्रकृति चले हमारे अनुकूल!
@ दयाराम वर्मा बेंगलुरु 17.02.2024
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें