कविता: मैं टूट गया हूँ 


ईमान लेकर बढ़े जगत में
कटे कुछ दिन जब बेकारी और कष्ट में
सिद्धान्त सारे भूल गया हूँ
ईमानदारों की बे-ईमानी से लुट गया हूँ
यह सच है कि मैं टूट गया हूँ

हर विषय में डिस्टिंक्शन लाए
कहीं सिफ़ारिश कहीं डोनेशन भाए
नौकरों की नौकरी से भी
मोहताज हो चला हूँ
हर गेट से वेट करते
ओवरएज हो चला हूँ
धीरज से अब रूठ गया हूँ
यह सच है कि मैं टूट गया हूँ

स्कूटर छोड़ सैकिंड-हैंड होंडा लाए
टॉयर-ट्यूब नए बदलवाए
पेट्रोल के कसाव में मगर
खच्चर से भी पीछे छूट गया हूँ
यह सच है कि मैं टूट गया हूँ

व्हाट्स-एप ट्विटर की लहर आई
करता कब तक मैं कतराई
नित नए एप के पीछे
हर ऐब में डूब गया हूँ
यह सच है कि मैं टूट गया हूँ

सब कुछ सोच समझ आखिर
नेताओं की चमचागीरी की खातिर
चमचा बनने चला जहाँ कहीं
कड़छों की पाकर भरमार वहीं
हर माहौल में घुट गया हूँ
यह सच है कि मैं टूट गया हूँ

 @ दयाराम वर्मा जयपुर

Publication-देवभारती (अक्टूबर-दिसंबर 2019)

 

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