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जहरीला कुकुरमुत्ता-प्रकाशन वर्ष 1938 लेखक अर्नेस्ट हाइमर |
जनवरी 1933 में जर्मनी में यहूदियों की जनसंख्या 5.23 लाख थी जो कुल जनसंख्या 670 लाख का 1 % से भी कम (0.78%) थी. नाजी पार्टी के आने के बाद
बङी संख्या में यहूदी आस पास के देशों में पलायन करने लगे. जून 1933 में जर्मनी में इनकी आबादी घटकर 5.05 लाख (0.75%) रह गई. उस समय पङोसी देश पोलैंड में
इनकी जनसंख्या 33.35 लाख, सोवियत यूनियन में 30.20 लाख, लिथुआनिया में 1.68 लाख, चेकोस्लोवाकिया में 3.57 लाख, ऑस्ट्रिया में 1.85 लाख, रोमानिया में 7.57 लाख, फ्रांस में 3.30 लाख और ब्रिटेन में 3.85 लाख थी. कुल मिलाकर यूरोप में इनकी आबादी 95 लाख थी जो विश्व में कुल यहूदी जनसंख्या का लगभग 60% थी. बहुत से यूरोपीयन देशों में इनकी जनसंख्या का प्रतिशत 4 प्रतिशत या उससे भी अधिक था फिर भी जर्मनी के अलावा किसी भी अन्य
देशवासियों को यहूदियों से कोई खतरा नहीं हुआ.
लेकिन नाजियों को लगता था कि यहूदी, हमारी संस्कृति, राष्ट्रवाद, धर्म और व्यवसाय आदि के लिए खतरा है. ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो सन 1933 में नाजियों के उदय से बहुत पहले से ही दोनों समुदायों के बीच अविश्वास और
घृणा की चौङी खाई थी. नाजियों ने उस चिंगारी को हवा दी और उसे शोलों में बदल दिया.
धार्मिक और नस्लीय कट्टरता सदैव पहले अपने लिए अनुकूल वातावरण तैयार करता है.
अख़बारों-पत्र-पत्रिकाओं के जरिए, चलचित्र और नाटकों के
माध्यम से, राजनैतिक सभाओं-सम्मेलनों
आदि में प्रत्येक संभव चैनल के द्वारा अफ़वाहें फैलाना, फ़र्जी
ख़बरें छापना, झूठे और मनगढ़ंत इल्ज़ाम लगाना और इनका
बार-बार दोहराव-एक ऐसी कारगर कूटनीति है जो धीरे-धीरे परवान चढ़ती है.
एक समय के बाद, जनमानस के मनोविज्ञान को जकङ कर ये नरेटिव उसके दिल-दिमाग और विचारों पर इस कदर हावी हो जाते हैं कि वह इस विषय के किसी भी सही-गलत या उचित-अनुचित पहलू पर तार्किक रूप से सुनना, सोचना, समझना और बोलना बंद कर देता है. एक धर्म या नस्ल विशेष के प्रति नफ़रती पूर्वाग्रह उसे एक उन्मादी भीङ में बदल देते हैं. जब कभी इस भीङ को सत्ता का समर्थन हासिल हो जाता है तब यह खुलकर नंगा नाच करने लगती है. नाजियों ने न केवल वयस्क जर्मन आबादी में यहूदी विरोध का जहर छिङका अपितु ऐसा प्रबंध करने की भी कोशिश की कि भावी पीढ़ी के डी.एन.ए. तक में यहूदी नफरत घुस जाए! इसी सोच का परिणाम थी सन 1938 में प्रकाशित एक कार्टून पुस्तक- ‘डेर गिफ्टपिल्ज’ अर्थात 'जहरीला कुकुरमुत्ता'. छोटे बच्चों के मन-मस्तिष्क में इस पुस्तक के जरिए नाजियों ने यहूदी-घृणा को पैवस्त करने का प्रयास किया.
64-पृष्ठों की इस पुस्तक
को वर्ष 1938 में अर्नेस्ट हाइमर ने लिखा. पुस्तक
में न केवल नेशनल सोशलिस्ट प्रचार की शैली में लिखे गए पाठ शामिल हैं, बल्कि यहूदी-विरोधी चित्र भी शामिल हैं. इस पुस्तक में व्याख्या सहित बहुत से यहूदी विरोधी कार्टून
हैं.
उदाहरण के तौर पर, पुस्तक के कवर-पेज पर तोते जैसी नाक
और घनी दाढी वाले एक व्यक्ति को कुकुरमुत्ता नुमा टोप पहले दर्शाया गया है. लिखा है, ‘जैसे अक्सर जहरीले कुकुरमुत्ते को
खाने योग्य कुकुरमुत्ते से पहचानना मुश्किल होता है, वैसे
ही एक यहूदी को धोखेबाज और अपराधी के रूप में पहचानना भी बहुत कठिन होता है.’
पुस्तक में एक डॉक्टर की कहानी है जो जर्मन युवतियों के
साथ बदसलूकी करता है. एक यहूदी वकील और व्यापारी की कहानी है जो जर्मन के साथ
धोखाधङी करते हैं. एक कार्टून बतला रहा है कि यहूदी को उसकी छह नंबर की तरह
दिखने वाली मुङी हुई नाक से पहचानें! साम्यवाद और यहूदी धर्म के बीच संबंध होने का
भी पुस्तक दावा करती है. अंतिम अध्याय में लिखा है कि कोई भी ‘सभ्य यहूदी’ नहीं हो सकता और यहूदी प्रश्न का
हल खोजे बिना मानवता का उद्धार नहीं हो सकता. एक जगह लिखा है-‘इन लोगों (यहूदियों) को देखो! जूओं से भरी दाढ़ी! गंदे, उभरे हुए कान….’
एक कार्टून में दर्शाया गया है कि एक
यहूदी ने कैसे एक जर्मन को उसके खेत से बेदखल कर दिया और प्रतिक्रिया स्वरूप लिखा
है –‘पापा, एक दिन जब मेरा खुद का खेत होगा, तो कोई यहूदी
मेरे घर में प्रवेश नहीं करेगा...’
एक लघुकथा में एक औरत खेत से लौटते हुए
ईसा मसीह की सलीब के पास रुकती है और अपने बच्चों को
समझाती है कि –‘देखो जो यह
सलीब पर लटका है वह यहूदियों का सबसे बङा दुश्मन था. उसने यहूदियों की धृष्टता और
नीचता की पहचान कर ली थी. एक बार उसने यहूदियों को चर्च से चाबुक मार कर भगा दिया
क्योंकि वहाँ वे अपने धन का लेनदेन कर रहे थे. यीशु ने यहूदियों से कहा कि वे सदा
से इंसानों के हत्यारे रहे हैं, वे शैतान के वंशज हैं
और शैतानों की तरह ही एक के बाद दूसरा अपराध करते हुए जीवित रह सकते हैं.’
‘क्योंकि यीशु ने
दुनिया को सच्चाई बताई, इसलिए यहूदियों ने उसे मार
डाला. उन्होंने उसके हाथों और पैरों में कीलें ठोंक दीं और धीरे-धीरे उसका खून
बहने दिया. इसी प्रकार से उन्होंने कई अन्य लोगों को भी मार डाला, जिन्होंने यहूदियों के बारे में सच कहने का साहस किया…... बच्चों, इन बातों को हमेशा याद रखना. जब भी तुम कोई सलीब देखो तो “गोलगोथा” पर यहूदियों द्वारा की गई भयानक हत्या
के बारे में सोचना. याद रखो कि यहूदी शैतान की संतान और मानव हत्यारे हैं.’
गोलगोथा, येरुशलम शहर के पास स्थित एक जगह
का नाम है, माना जाता है कि यीशु मसीह को उक्त स्थान पर
सूली पर लटकाया गया था. यीशु एक यहूदी थे और
तत्कालीन रोमन राजा ने उनको सूली की सजा सुनाई. उनके अनुयाई ईसाई कहलाए, जर्मन नाजी भी ईसाई धर्म को
मानते हैं. कालांतर में नाजियों ने हर यहूदी पर ईशा के हत्यारे का लेबल चिपका
दिया.
हिटलर ने प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी
की अपमानजनक हार के लिए यहूदी समर्थित तत्कालीन वामपंथी सरकार को जिम्मेवार
ठहराया. 1 प्रतिशत से भी कम लोगों की विरोधी राजनैतिक विचारधारा, हिटलर के लिए इस हद तक असहनीय हो गई थी कि धरती पर यहूदियों का समूल नाश
उसके जीवन का ध्येय बन गया!
समाज की जङों में धर्मांधता या
नस्लांधता का जहर डालकर कैसे नफ़रती फसलें तैयार की जाती हैं, यह पुस्तक उसका एक
बेहतरीन उदाहरण है. यहूदी विरोध की सोच जब जर्मन समाज के खून में समा गई तो हिटलर
को अपने मंसूबों को अंजाम देने के लिए अधिक मेहनत नहीं करनी पङी. यहूदियों के
खिलाफ कोई भी नफ़रती शगूफा, उन्मादी भीङ को हिंसक और
पाशविक बनाने के लिए पर्याप्त था. यही रणनीति, यही
कूटनीति विश्व भर में तानाशाही विचारधारा के लोग आज भी अपना रहे हैं.
अब देखिए यह भी कितनी
बङी विडंबना है कि जिस होलोकॉस्ट में साठ लाख लोग मारे गए और जिसके लाखों साक्ष्य मौजूद थे, उसके बारे में नाजी
विचारों के समर्थक और हिटलर से सहानुभूति रखने वाले लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि
इतिहास में होलोकॉस्ट जैसी कोई घटना नहीं हुई! यहाँ तक कि उन्होंने गैस चैंबरों के
अस्तित्व से भी इनकार कर दिया और कहा कि जो कुछ भी मित्र देशों की सेनाओं ने 1945 में देखा, उसे बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ाकर दुनिया के
सामने पेश किया गया है. 24 जुलाई, 1996 को, नेशनल सोशलिस्ट व्हाइट पीपल्स पार्टी के
नेता, हैरोल्ड कोविंगटन ने कहा,
"होलोकॉस्ट को हटा
दो और तुम्हारे पास क्या बचता है? कीमती होलोकॉस्ट के
बिना, यहूदी क्या हैं? बस
अंतरराष्ट्रीय डाकुओं और हत्यारों का एक गंदा सा समूह, जिन्होंने
मानव इतिहास में सबसे बड़ा, सबसे कपटी धोखा
दिया..."
होलोकॉस्ट में प्रताङित और मारे गए
लोगों के साथ हुए अत्याचारों की दुनिया की कोई भी अदालत कभी भरपाई नहीं कर सकती.
लेकिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय से यह तो अपेक्षित था कि वे इन अत्याचारों को स्वीकार
करें. इसके लिए भी संयुक्त राष्ट्र संघ में लंबी लङाई लङनी पङी. 13 जनवरी 2022 को संयुक्त राष्ट्र संघ ने जर्मन नाजियों के द्वारा ‘होलोकॉस्ट से इनकार’ पर एक प्रस्ताव पारित करते
हुए पुष्ट किया कि,
‘होलोकॉस्ट के
परिणामस्वरूप लगभग 60 लाख यहूदियों की हत्या हुई, जिनमें
से 15 लाख बच्चे थे, जो
यहूदी लोगों का एक तिहाई हिस्सा थे. इसके अतिरिक्त अन्य देशवासियों, अल्पसंख्यकों और अन्य लक्षित समूहों और व्यक्तियों के लाखों सदस्यों की भी
हत्या हुई. होलोकॉस्ट हमेशा सभी लोगों को नफरत, कट्टरता, नस्लवाद और पूर्वाग्रह के खतरों के प्रति चेतावनी देता रहेगा.’
यू.एन.ओ. ने इस प्रस्ताव में नस्लवाद, नस्लीय भेदभाव, ज़ेनोफोबिया और संबंधित असहिष्णुता पर नाजीवाद और फासीवाद जैसी
विचारधाराओं को अपनाने से उत्पन्न घटनाओं और मानवीय उत्पीड़न, अल्पसंख्यकों से संबंधित लोगों के इतिहास, पड़ोसी
देशों के साथ संबंधों इत्यादि को अच्छी तरह से प्रशिक्षित शिक्षकों के माध्यम से
इतिहास की कक्षाओं में पदाने के महत्व पर जोर दिया. प्रस्ताव में सदस्य राज्यों से
आग्रह किया गया कि वे ऐसे शैक्षिक कार्यक्रम विकसित करें जो भावी पीढ़ियों को
होलोकॉस्ट के पाठों से अवगत कराएं ताकि भविष्य में नरसंहार की घटनाओं को रोकने में
मदद मिल सके.
लेकिन आज विश्व भर में बढ़ती जा रही
धार्मिक और नस्लीय कट्टरता से तो यही लगता है कि संयुक्त राष्ट्र के इस प्रस्ताव
का सदस्य देशों ने न तो कोई गंभीर संज्ञान लिया है और न ही होलोकॉस्ट जैसी घटना से
उन्होंने कोई सबक लिया है.
© दयाराम वर्मा, जयपुर 25 जुलाई 2024
Amezing n katu satya 👌
जवाब देंहटाएंWhat was the origin of the hate against jews by the Germans. Is that hate is seen even today? In what form?
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