कविता: भीङ का तंत्र
भरे परिसर अदालत में, डंके की चोट
किया स्वयं मुंसिफ़ ने उद्घोष
बहुसंख्यकों के अनुसार चलेगा ये देश महान
एक डंडा, एक फंडा, होगी एक पहचान
शपथ गई तेल लेने
बोले जो भीङ, वही अंतिम निर्णय जान!
संविधान-विधान वही होगा
नफा-नुकसान, इल्जाम-इकराम[1] वही होगा
अदालत का संज्ञान वही होगा
संवेदना, सबूत, न साक्ष्यों की होगी दरकार[2]
वही होगा गुनाह, वही होगा गुनाहगार
जाही विधि साजे भीङतंत्र-सरकार!
लब खोलने की
आजादी यत्र-तत्र डोलने की
हँसने-रोने, चलने-रुकने, उठने-बैठने-झुकने की
कहाँ डले छत-छाँह, कहाँ बने इबागत-गाह
होगी आजादी, कब, कैसी और कितनी
भीङ तय करेगी जितनी!
बांटते मुंसिफ ऐसा भी ज्ञान
धेनु[3] लेती-देती सदा ऑक्सीजन
रोए मयूर टपके अश्रु, होए मयूरी का गर्भाधान
बर्बाद गुलिस्तां करने को …..
रामचंद्र कह गए सिया से ऐसा कलजुग आएगा
हंस चुगेगा दाना-दुनका कौआ मोती खाएगा!
उम्मीद किससे, मांगें किससे इंसाफ
नमूने कर रहे रहनुमाई, ओढे छद्म लिहाफ[4]
लोकतंत्र हैरान है, पशेमान[5] है
होता आईना[6] अपमानित, नित परेशान है
खुल कर खेलो, है स्पष्ट संकेत
करे कौन अब रखवाली, जब बाङ ही खाए खेत!
© दयाराम वर्मा, जयपुर (राज.) 12 दिसंबर, 2024
[1] इकराम- दान, बख्शीश
[2] दरकार-आवश्यकता
[3] धेनु-गाय
[4] लिहाफ- रजाई
[5] पशेमान-लज्जित, शर्मिंदा
[6] आईना-संविधान
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