कविता: कलम की अभिलाषा
मुझे जानना चाहते हो
अंतर्मन में मेरे झांकना चाहते हो
तो सुनो-मैं चाहती हूँ उस हृदय का साथ
अनुकंपा, इंसानियत, निष्ठा धङकती जिसके पास!
नहीं चाहती होना मंचासीन
पढ़ना क़सीदे सरकार के, करना झूठे गुणगान
प्रायोजित महफिल, गोदी मीडिया, सहमे कद्रदान
बँटते जहाँ चाटुकारिता के बदले, शोहरत-शाल-सम्मान!
है मेरी अभिलाषा
खुलकर करूँ विरोध-प्रतिरोध दमन का
लिखूँ वाकया हर्फ़-ब-हर्फ़[1] राजकीय शमन का
करूँ नित अनावृत[2] भेद- प्रपंच, पाखंड, गबन का!
बन जाऊं मैं रणचंडी
दुराचारी की काल बनूँ, अबला की ढाल बनूँ
तन जाऊँ गांडीव[3] सी, जुल्मी-जुल्म-सितम के आगे
जलूँ बन बाती ऐसी, अंधियारा दर्प, द्वेष, जङता का भागे!
मैं पिद्दी[4] हूँ फिर भी जिद्दी हूँ
खिलाफ हुक्मरानों के चलूँ निडर
नहीं डिगूँ कभी उसूलों से, रहूँ बेलौस[5] बेफ़िक्र
सर उठाकर सवाल करूँ, हो खुदा, गॉड या ईश्वर!
अरमान सजाती, उम्मीद जगाती
सवार तल्ख सवालों पर भरूँ ऊँची उङान
लिखूँ संघर्ष मृग का, शिकारी व्याघ्र नहीं महान
विस्मृत, तिरस्कृत, दबे-कुचलों की बनूँ बुलंद जुबान!
शब्दों की वह धार मिले
नित मानस बगिया में, नव सुविचार खिले
असर अदम-पाश-दुष्यंत सा, हों सब खामोश
अंकुश लगे निरंकुश पर, भर दे लेखन में ऐसा जोश!
© दयाराम वर्मा, जयपुर 19 दिसंबर, 2024
[1] हर्फ़-ब-हर्फ़-अक्षरश:
[2] अनावृत्त-आवरण रहित
[3] गांडीव-महाभारत के पात्र अर्जुन के धनुष का नाम
[4] पिद्दी-अत्यंत तुच्छ जीव, एक छोटा पक्षी
[5] बेलौस-सच्चा या खरा, बेमुरव्वत, ममताहीन
प्रकाशन विवरण-
1. भोपाल से प्रकाशित होने वाली मासिक हिंदी साहित्यिक पत्रिका- अक्षरा के अप्रैल, 2025 के अंक में चार अन्य कविताओं के साथ प्रकाशित
2. राजस्थान साहित्य अकादमी की मुख पत्रिका मधुमती के दिसंबर-2024 के अंक में 6 अन्य कविताओं के साथ प्रकाशन
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