डोनाल्ड ट्रम्प की दादागिरी 

डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने दूसरे कार्यकाल के लिए 20 जनवरी, 2025 को अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण की. जैसा कि अपेक्षित था, इस मर्तबा, ‘कभी भी’, कुछ भीबोलती उनकी बेलगाम जुबान, धौंस जमाते भाषण, असीमित दंभ में डूबी अभिवृत्ति, मन मुआफिक नियम-कानूनों की घोषणा, संवेदनाओं की हदों से कोसों दूर निरंकुश निर्णय, पहले से कहीं अधिक तीव्र और आक्रामक थे. 

अगले ही दिन ट्रम्प ने संयुक्त राज्य अमेरिका में, पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा पारित कई कार्यकारी आदेशों को वापस ले लिया. इनमें वे आदेश शामिल हैं जो ट्रांसजेंडर लोगों को सेना में सेवा करने की अनुमति देते थे, समलैंगिक, उभयलिंगी और ट्रांसजेंडर (LGBT) युवाओं के स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देते थे, और शिक्षा, आवास और आव्रजन जैसे क्षेत्रों में संघीय लैंगिक भेदभाव सुरक्षा को यौन उन्मुखता या लिंग पहचान के आधार पर भेदभाव को रोकने के लिए व्याख्यायित करते थे. उन्होंने देश में अवैध आप्रवासन को समाप्त करने का भी वादा किया, यह कहते हुए कि लाखों "आपराधिक एलियंस" को निर्वासित कर दिया जाएगा.

ट्रांसजेंडर यानि थर्ड जेंडर होना कोई अपराध नहीं है. यह एक जन्मजात शारीरिक कमी है-जिस पर किसी का नियंत्रण नहीं होता. आज सभी सभ्य समाज, इनको मुख्यधारा में लाने की वकालत करते हैं और प्रत्येक स्तर पर इनके साथ सामाजिक बराबरी को बढ़ावा दे रहे हैं. हाँ समलैंगिकता या उभय-लैंगिकता, अति-भौतिकवाद से उपजा एक ऐसा मानसिक विकार है जो अप्राकृतिक और निंदनीय है, अतएव ऐसे लोग सरकारी सहानुभूति के पात्र नहीं होने चाहिए. फिर गे, लेस्बियन और ट्रांसजेंडर को एक ही चश्मे से देखना क्या उचित है? लेकिन बड़बोले ट्रम्प ने तो सबको एक साथ लपेट लिया.

चुनावी प्रचार में अपने मेनिफेस्टो में अवैध आप्रवासियों को अमेरिका से निकाल बाहर करने का उनका ऐलान बेहद स्पष्ट था. शपथ ग्रहण के तुरंत बाद ही इसके बारे में घोषणा कर उन्होंने वर्षों से अमेरिका में रह रहे लाखों अवैध आप्रवासियों के जीवन यापन और सामाजिक सुरक्षा पर सवालिया निशान लगा दिए. अमेरिका के होमलैंड सुरक्षा विभाग के जनवरी 2022 के अनुमानों के अनुसार, वहाँ 110 लाख अवैध आप्रवासी हैं. अमेरिका के लिए एक ओर जहाँ यह समस्या है, वहीं उसकी अर्थ व्यवस्था में अपेक्षाकृत सस्ते श्रम का बङा योगदान भी इन आप्रवासियों का होता है.

यह पहली बार नहीं है कि अमेरिका में अवैध आप्रवासियों के खिलाफ अभियान शुरू किया गया है, अक्सर ऐसी कार्रवाइयाँ होती रही हैं. वर्ष 2013 में बराक ओबामा के समय भी 4.32 लाख लोगों का, उनके मूल राष्ट्रों में निर्वासन किया गया था. फर्क यह है कि इस बार का पैमाना सबसे बङा माना जा रहा है.  ट्रम्प ने कहा है कि वह एलियन एनिमीज़ एक्ट का सहारा लेंगे, जो 1798 का एक कानून है और राष्ट्रपति को यह अधिकार देता है कि वह किसी भी ऐसे गैर-नागरिक को निर्वासित कर सकते हैं जो उस देश का हो, जिसके साथ अमेरिका युद्ध में है.

लेकिन ट्रम्प भारत जैसे अपने दोस्त राष्ट्रों को भी नहीं बख्श रहे. 1980 में अमेरिका में शरण लेने के अधिकारका कानून बना. 2001 के एक सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत, यदि यह संभावित नहीं है कि किसी व्यक्ति के मूल देश उसे वापस ले लेंगे, तो ऐसे मामलों में अवैध रूप से देश में रहने वाले लोगों को अनिश्चित काल तक हिरासत में नहीं रखा जा सकता. क्यूबा, वेनेजुएला, निकारागुआ और अन्य देश या तो अपने नागरिकों को स्वीकार करने में देरी करते हैं या मना कर देते हैं.

ट्रम्प ऐसे नियमों को ठेंगा दिखाने में जरा भी नहीं हिचकते. जनवरी के अंतिम सप्ताह से ही अमेरिका में अवैध आप्रवासियों के साथ खूंखार अपराधियों की तरह बर्ताव आरंभ कर दिया गया. जो पकङे गए उनके हाथों, कमर व पैरों में बेङियाँ डाल कर, वायु सेना के जहाजों में लाद कर मूल देशों में भेजने की कार्रवाई शुरु हो गई. इसी क्रम में 5 फरवरी को पहली खेप के रूप में भारत के 104 ऐसे चिन्हित लोगों को अमृतसर हवाई अड्डे पर छोङा गया. इनमें 19 महिलाएं और 13 नाबालिग भी शामिल हैं.  

यहाँ अमेरिकी राष्ट्रपति की ग़ज़ा को लेकर एक और हास्यास्पद घोषणा का जिक्र भी प्रासंगिक है. उन्होंने कहा कि अमेरिका 'ग़ज़ा पट्टी में काम करेगा.' उनके सुझावों में ग़ज़ा पट्टी का पुनर्विकास करना और इसे 'मध्य पूर्व का रिविएरा (छुट्टी बिताने वाली ख़ूबसूरत जगह)' में बदलना शामिल है. इससे पहले ट्रम्प ने कहा था कि फिलिस्तीनियों को मिस्र और जॉर्डन में स्थायी रूप से 'बसाया' जाए. गोया, ग़ज़ा जंग में जीती गई कोई वस्तु है जिसे वह जैसे चाहें इस्तेमाल करे! वहाँ के लोग, इंसान नहीं, भेङ-बकरियां हैं जिन्हें जब चाहें, काटा जा सकता है, जब चाहे जहाँ चाहे, हाँका जा सकता है.

उनकी तानाशाही मानसिकता, पनामा नहर को कब्जे में लेने और ग्रीनलैंड पर आधिपत्य स्थापित करने को लेकर उनके हालिया के बयानों से भी पुष्ट हो रही है. जो विरोध करे, वे आर्थिक प्रतिबंधों से लेकर, अपने निर्यात पर भारी भरकम अमेरिकी शुल्क चुकाने के लिए तैयार रहें.

किसी अपराजेय योद्धा की शैली में ट्रम्प द्वारा एक के बाद एक की जा रही ये घोषणाएं पूरी दुनिया के लिए गंभीर चिंता के मुद्दे होना चाहिए. लेकिन विश्व की सबसे बङी आर्थिक एवं सामरिक ताकत और परमाणु शक्ति संपन्न अमेरिका के सामने इस समय केवल रूस और चीन के अलावा, दुनिया के किसी भी राष्ट्र की विरोध करने की हिम्मत नहीं है. बल्कि रूस और चीन भी प्रत्यक्ष विरोध करने से बचते हैं. यही कारण है कि ट्रम्प जैसे धुर दक्षिणपंथी, तानाशाही विचारधारा के शासक, पूरी दुनिया को अपनी मर्जी से चलाना चाहते हैं. उन्हें न मानवाधिकार संगठनों की परवाह है, न संयुक्त राष्ट्र संघ के निंदा प्रस्तावों की, न व्यापक आलोचनाओं की. छिटपुट राष्ट्रों की आपत्तियों की तो वे क्या ही परवाह करेंगे.

अपमान और अन्याय के विरुद्ध चुप्पी के अन्य कारणों में, हो सकता है अनेक राष्ट्राध्यक्षों के निजी स्वार्थ आङे आते हों, या उनके व्यापारिक हित दाँव पर लगे हों. हो सकता है उनकी व्यक्तिगत गुप्त जानकारियां या भ्रष्टाचार के सबूत आदि, ट्रम्प और उसके शक्तिशाली व्यापारी दोस्तों के हाथों में हो, जैसे गूगल, जी मेल, ट्विटर, व्हाट्सएप, पेगासस आदि प्लेटफॉर्म और एप के मालिक! इनके जरिए दुनिया के साइबर सिस्टम को नियंत्रित करने वाले चंद लोगों के लिए, ताकतवर लोगों की खुफिया जानकारी जुटाना और उसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना कोई आश्चर्य की बात नहीं.

इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि इन जानकारियों का वे लोग ठीक वैसे ही इस्तेमाल कर रहे हों जैसे कि बहुधा सत्ताधारी दल, पुलिस, प्रशासन और अन्य प्रवर्तन संस्थाओं का इस्तेमाल, अपने विरोधियों और विपक्ष को कुचलने के लिए करते हैं!

लेकिन जब बङी-बङी ताकतों के मुँह सिले हुए होते हैं, भयभीत राष्ट्र अपनी भीरुता को व्यवहारिकता के लबादे में छुपाकर, न्यायोचित ठहराने का स्वांग कर रहे होते हैं, ठीक उसी समय एक मामूली सा शख्स उठ खङा होता है, कोई छोटा सा गैरतमंद राष्ट्र अपनी तमाम कमजोरियों के बावजूद, अपना विरोध दर्ज करा देता है. इंसाफ और इंसानियत के पक्ष में उनकी मंद आवाज, फ़ासिस्ट नक्कारखाने की दीवारों को यदि ढहा नहीं सकती तो कम से कम हिला जरूर सकती हैं.

जो बात बङे-बङे दिग्गज कहने से कतराते हैं-घबराते हैं, वह बात ऐसे शख्स बेखौफ कह जाते हैं. इनमें से एक नाम है एपिस्कोपल बिशप द राइट रेव. मारियान एडगर बुड का. जब ट्रम्प ने 21 जनवरी को वाशिंगटन नेशनल कैथेड्रल में एक परंपरागत प्रार्थना सत्र में भाग लिया तो प्रार्थना सत्र के बाद चर्च की बिशप एडगर ने अत्यंत शालीन शब्दों में निवेदन करते हुए, उनके मानवता विरोधी फैसलों को नग्न कर डाला.

यद्यपि एडगर बुड एक कट्टर धर्म गुरू मानी जाती है लेकिन उन्होंने सीधे-सपाट शब्दों में दुनिया के सबसे ताकतवर देश के राष्ट्रपति से अपील करते हुए कहा,  “आइए मैं एक अंतिम निवेदन करती हूँ, माननीय राष्ट्रपति. करोड़ों लोगों ने आप पर अपना विश्वास जताया है. जैसा कि आपने कल राष्ट्र से कहा था, आपने एक प्रेममय ईश्वर के दिव्य हस्तक्षेप को महसूस किया है. मैं आपसे हमारे ईश्वर के नाम पर अनुरोध करती हूं कि आप हमारे देश के उन लोगों पर दया करें, जो इस समय डरे हुए हैं. डेमोक्रेट, रिपब्लिकन और स्वतंत्र परिवारों में ऐसे समलैंगिक, लेस्बियन और ट्रांसजेंडर बच्चे हैं जो अपनी जान को लेकर डरे हुए हैं. और वे लोग जो हमारी फसलें तोड़ते हैं और हमारे कार्यालय भवनों की सफाई करते हैं; जो हमारे पोल्ट्री फार्म और मीट-पैकिंग प्लांट्स में काम करते हैं; जो हमारे रेस्तरां में खाना खाने के बाद बर्तन धोते हैं और अस्पतालों में रात की पाली में काम करते हैं.

हो सकता है वे नागरिक न हों या उनके पास उचित दस्तावेज़ न हों, लेकिन अधिकांश प्रवासी अपराधी नहीं हैं. वे कर चुकाते हैं, और अच्छे पड़ोसी हैं. वे हमारी चर्च, मस्जिद, सिनेगॉग, गुरुद्वारा और मंदिरों के समर्पित सदस्य हैं.

माननीय राष्ट्रपति, उन लोगों पर दया करें जो हमारी समुदायों में हैं, जिनके बच्चे इस डर में जी रहे हैं कि उनके माता-पिता को उनसे अलग कर दिया जाएगा. उन लोगों की मदद करें जो युद्ध क्षेत्रों और अपने ही देश में हो रहे उत्पीड़न से बचकर यहां दया और स्वागत की उम्मीद में आए हैं. हमारा ईश्वर हमें सिखाता है कि हमें अजनबियों पर दया करनी चाहिए, क्योंकि हम भी कभी इस भूमि पर अजनबी थे. ईश्वर हमें सभी मनुष्यों की गरिमा का सम्मान करने, प्रेमपूर्वक सत्य बोलने, और एक-दूसरे तथा अपने ईश्वर के साथ विनम्रता से चलने की शक्ति और साहस प्रदान करें, ताकि इस राष्ट्र और पूरी दुनिया के सभी लोगों की भलाई हो सके.” एडगर बुड के इस भावुक भाषण की यह पंक्ति काबिल-ए-गौर है जिसमें वे कहती हैं हमारा ईश्वर हमें सिखाता है कि हमें अजनबियों पर दया करनी चाहिए, क्योंकि हम भी कभी इस भूमि पर अजनबी थे.

और, यह एक कटु ऐतिहासिक सच है कि अमेरिका के मूल निवासियों को खदेङा गया, गुलाम बनाया गया, प्रताङित किया गया, मारा गया. बाहरी लोगों, विशेषकर यूरोपियन देशों के समुद्री लुटेरे, भागकर आए पढ़े लिखे, होशियार और अवसरवादी लोग वहाँ काबिज हो गए और कालांतर में अमेरिका के मालिक बन बैठे. यह ज्यादा पुरानी बात नहीं है, लगभग सात सौ वर्ष पूर्व, 15वीं शताब्दी के दौरान, स्पेन और पुर्तगाल के यूरोपीय देशों ने एशिया के लिए नए व्यापार मार्ग खोजने के लिए समुद्री अभियान आरंभ किए. इन्हीं में से एक अभियान के दौरान क्रिस्टोफर कोलंबस को 1492 में पश्चिमी गोलार्ध में एक भूमि मिली-कैरिबियन द्वीप! और उसके बाद इन यूरोपीयन देशों ने उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका की भूमि और संसाधनों पर कब्जे की होङ लगा दी.

वहाँ के मूल निवासियों में अधिकांश, बाहर से आई चेचक जैसी गंभीर संक्रामक बीमारियों से मारे गए. उनको गुलाम बना लिया गया और कालांतर में समाप्त प्राय: कर दिया गया. ठीक वैसे ही जैसे कि आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों को यूरोपियन लोगों ने अपनी सत्ता, वैभव, धन एवं संपत्ति की लोलुपता का शिकार बनाकर, हजारों साल पहले पूरी तरह नष्ट कर दिया और खुद वहाँ के स्वामी बन बैठे. स्वयं ट्रम्प की पारिवारिक जड़ें यूरोप में हैं, उनके पिता जर्मन थे और मां स्कॉटलैंड वासी.

यह सच है कि अवैध आप्रवासन पर कङे नियम बनाना और उनकी अनुपालना, किसी भी देश का अपना आंतरिक मामला है. वह चाहे तो बाहरी लोगों को शरण दे, चाहे तो न दे. अवैध आप्रवासियों के मनी लॉन्ड्रिंग, ड्रग्स और मानव तस्करी जैसे अपराधों में लिप्त हो जाने की संभावनाएं अधिक होती हैं. किसी भी देश को अपनी कानून-व्यवस्था के मद्देनजर, इनके खिलाफ कार्रवाई करने और प्रभावी कानून बनाने की आजादी है. सतही तौर पर तो ये दलीलें बहुत स्पष्ट और अकाट्य प्रतीत होती हैं, परंतु क्या अवैध आप्रवासन के सभी मामले, विशेषकर अमेरिका के संदर्भ में, एक ही पंक्ति में परिभाषित किए जा सकते हैं?

अवैध आप्रवासियों पर प्राय: घुसपैठिये और आतंकवादी होने के लेबल चस्पा कर दिए जाते हैं- कुछ एक घटनाओं को आधार बना कर सभी आप्रवासियों को एक ही तराजू में तौल दिया जाता है. लेकिन अवैध आप्रवासन और अपराध दोनों अलग हैं. आप्रवासियों के साथ मानवोचित और न्यायोचित व्यवहार अपेक्षित है- चाहे वे वैध रूप से आए हैं या अवैध रूप से.

दुनिया के अधिकांश देशों में अवैध आप्रवासी रहते हैं-कहीं कम कहीं ज्यादा. कोई भी व्यक्ति अपनी सर-जमीं को आसानी से नहीं छोङना चाहता और जब बात अवैध रूप से घुसने की होती है, उसे पता होता है कि कितने खतरे है, जेल जाने से लेकर सुरक्षा बलों की गोलियों से मारे जाने तक के खतरे. डंकी-रूट[1] की कुख्यात और भयानक कहानियाँ इस बात की पुष्टि करती हैं.

ये लोग अपेक्षाकृत कम पढ़े-लिखे होते हैं, कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि से आते हैं, अल्प या नगण्य व्यवसायिक योग्यता रखते हैं और वैध माध्यमों से अमेरिका का वीजा प्राप्त नहीं कर पाते. लेकिन फिर भी कर्ज उठाकर, जमीनें बेच कर, रिश्तेदारों-दोस्तों से उधार लेकर, भारी भरकम रकम जुटाते हैं एवं वीजा एजेंट्स के झांसों में फंसते हैं. यूरोप और अमेरिका में कामकाज के बेहतर अवसर और इज्जत की जिंदगी, न्याय और समानता, अपेक्षाकृत कम भ्रष्टाचार, जाति-धर्म-नस्ल आदि की भिन्नता को प्राथमिकता न देकर योग्यता को तरजीह, कम समय में मोटी कमाई आदि ऐसे अनेक कारण हैं जो भारतीय उप महाद्वीप, खाङी के देशों, अफ्रीकी देशों, लैटिन अमेरिकी देशों के लाखों लोगों को आकर्षित करते हैं.

प्यू रिसर्च सेंटर की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में सर्वाधिक अवैध प्रवासी मेक्सिको के हैं-41लाख, दूसरे नंबर पर अल साल्वाडोर-8 लाख , तीसरे स्थान पर भारत-7.25 लाख, चौथे स्थान पर ग्वाटेमाला-7 लाख और 5.5 लाख की संख्या के साथ पाँचवें स्थान पर होंडुरास है. जाहिर है इतनी बङी संख्या में ये लोग रातों रात वहाँ नहीं पहुँचे होंगे; हो सकता है इनमें से बहुत से लोग दशकों से वहाँ रह रहे हों.

शायद ही किसी मुल्क के बहु-संख्यक धर्म मानने वालों के धर्म-गुरुओं ने अपने राष्ट्र में हो रहे विदेशी लोगों के साथ अमानवीय व्यवहार को लेकर, अपने देश के सर्वोच्च लीडर से, इस प्रकार की अपील का कभी साहस किया हो जैसा कि बिशप एडगर ने किया है. इस लिहाज से, मानव मात्र के प्रति सहानुभूति, दया और मानवीय दृष्टिकोण अपनाए जाने की बिशप एडगर की ट्रम्प द ग्रेटको की गई यह अपील, एक असाधारण अपील है. यद्यपि ट्रम्प ने तुरंत उनकी इस अपील को अपने छिछले अंदाज में खारिज कर दिया लेकिन एडगर के हौसले ने इतिहास में अभिव्यक्ति को शर्मसार होने से बचा लिया.

ट्रम्प को जवाब देने वालों में दूसरा नाम है, कोलंबिया के राष्ट्रपति गुस्तावो पेट्रो का. उन्होंने बेङियों में जकङकर अपने देशवासियों की वापसी के अपमानजनक तरीके के विरोध में अमेरिका से आ रही उड़ानों को हवाई रास्ता देने से इनकार कर दिया. पेट्रो ने अमेरिका में कोलंबियाई प्रवासियों के साथ अपराधियों जैसा व्यवहार करने पर आपत्ति जताते हुए कहा कि जब तक अमेरिका प्रवासियों के सम्मानजनक व्यवहार का प्रोटोकॉल नहीं बनाता है, तब तक कोलंबियाई प्रवासियों को लाने वाले अमेरिकी विमानों को देश में प्रवेश की इजाजत नहीं दी जाएगी. उन्होंने अपने स्वयं के विमान भेजे जो अवैध प्रवासियों को लेकर राजधानी बोगोटा लौटे.

और तीसरा नाम है, मैक्सिकन राष्ट्रपति क्लाउडिया शीनबाम का. ट्रम्प की मैक्सिकन सामान के आयात पर भारी शुल्क की धमकी और अन्य अपमानजनक टिप्पणियों से आहत होकर उन्होंने कहा: “तो, आपने दीवार बनाने के लिए वोट दिया... खैर, प्यारे अमेरिकियों, भले ही आपको भूगोल के बारे में ज़्यादा जानकारी न हो, क्योंकि अमेरिका आपके लिए आपका देश है, महाद्वीप नहीं, इसलिए यह ज़रूरी है कि आप पहली ईंट रखे जाने से पहले ही पता लगा लें कि उस दीवार के पार 7 अरब लोग हैं. लेकिन चूंकि आप वास्तव में "लोग" शब्द नहीं जानते, इसलिए हम उन्हें "उपभोक्ता" कहेंगे. 7 अरब उपभोक्ता 42 घंटे से भी कम समय में अपने आई-फोन को सैमसंग या हुआवेई डिवाइस से बदलने के लिए तैयार हैं.

वे लेवी की जगह ज़ारा या मासिमो डूटी की जीन्स भी ले सकते हैं. छह महीने से भी कम समय में, हम आसानी से फ़ोर्ड या शेवरले की कारें खरीदना बंद कर सकते हैं और उनकी जगह टोयोटा, किआ, माज़दा, होंडा, हुंडई, वोल्वो, सुबारू, रेनॉल्ट या बीएमडब्ल्यू ले सकते हैं, जो तकनीकी रूप से उनके द्वारा उत्पादित कारों से बेहतर हैं.

 वे 7 बिलियन लोग डायरेक्ट टीवी की सदस्यता लेना भी बंद कर सकते हैं, और हम ऐसा नहीं करना चाहते, लेकिन हम हॉलीवुड की फिल्में देखना बंद कर सकते हैं और अधिक लैटिन अमेरिकी या यूरोपीय प्रोडक्शन देखना शुरू कर सकते हैं, जिनमें बेहतर गुणवत्ता, संदेश, सिनेमाई तकनीक और सामग्री है. हालांकि यह अविश्वसनीय लग सकता है, हम डिज्नी को छोड़ सकते हैं और कैनकन, मैक्सिको, कनाडा या यूरोप में एक्सकेरेट रिसॉर्ट जा सकते हैं: दक्षिण, पूर्वी अमेरिका और यूरोप में अन्य बेहतरीन गंतव्य हैं. और भले ही आपको विश्वास न हो, मैक्सिको में भी मैकडॉनल्ड्स से बेहतर बर्गर हैं और उनमें बेहतर पोषण सामग्री है.

क्या किसी ने अमेरिका में पिरामिड देखे हैं? मिस्र, मैक्सिको, पेरू, ग्वाटेमाला, सूडान और अन्य देशों में अविश्वसनीय संस्कृतियों वाले पिरामिड हैं. जानें कि प्राचीन और आधुनिक दुनिया के अजूबे कहाँ हैं... उनमें से कोई भी अमेरिका में नहीं है... ट्रम्प पर शर्म आती है, उन्होंने इसे खरीदा और बेचा होगा!

हम जानते हैं कि एडिडास मौजूद है, न कि केवल नाइकी और हम पैनम जैसे मैक्सिकन टेनिस जूते पहनना शुरू कर सकते हैं. हम जितना सोचते हैं, उससे कहीं ज़्यादा जानते हैं.  उदाहरण के लिए, हम जानते हैं कि अगर ये 7 बिलियन उपभोक्ता उनके उत्पाद नहीं खरीदते हैं, तो बेरोजगारी होगी और उनकी अर्थव्यवस्था (नस्लवादी दीवार के भीतर) इतनी ढह जाएगी कि वे हमसे इस बदसूरत दीवार को तोड़ने की भीख मांगेंगे. हम ऐसा नहीं चाहते थे लेकिन.. आप दीवार चाहते हैं, आपको दीवार मिलती है. ईमानदारी से आभार के साथ.” 

उन्होंने ट्रम्प के सामूहिक जबरन निर्वासन की योजना पर बोलते हुए कहा कि, संयुक्त राज्य अमेरिका में रहने वाले मैक्सिकन यह जान लें कि वे "अकेले नहीं हैं, वे ला पातरिया (राष्ट्र) के नायक और नायिकाएं हैं-उन्हें कानूनी, वित्तीय, तार्किक और अन्य सहायता दी जाएगी. संयुक्त राज्य अमेरिका में रह रहे लाखों मैक्सिकन, मेक्सिको की अर्थव्यवस्था के भी स्तंभ हैं, जो हर साल अपने रिश्तेदारों और अन्य लोगों को 60 अरब डॉलर से अधिक की राशि भेजते हैं.

अवैध आप्रवासन के विरुद्ध, ट्रम्प द्वारा वर्तमान में की जा रही कार्रवाई के दो पक्ष हैं, कानूनी और मानवीय. कानून की दृष्टि में उनके निर्णय उचित हैं लेकिन मानवीय दृष्टि से उनके द्वारा अपनाए जा रहे तरीके गैर जरूरी, बेहूदा, अहंकारी और अपमानजनक हैं. बङी संख्या में किसी भी देश के वासियों को जो अन्यथा, घोषित अपराधी नहीं हैं, हथकङियों और बेङियों में जकङ कर, पशुओं की भांति सैनिक विमानों में लादकर डिपोर्ट कर देना, किसी भी स्वाभिमानी राष्ट्र के आत्मसम्मान को चोट पहुँचाता है. और बङी बात यह है कि ट्रम्प ने ऐसा जानबूझकर किया है-जैसे कि वे दुनिया को संदेश दे रहे हों. देखो, अमेरिका की ताकत! हम कुछ भी कर सकते हैं. 

मानवीय दृष्टिकोण को धता बताकर, विकसित देश अपने कुत्सित इरादों को पूरे करते रहें! कमजोर मुल्कों के संसाधन, जमीन, तेल, खनिज आदि चतुराई से, ढिठाई से, घुङकी से, साम-दाम-दंड-भेद,  किसी भी तरीके से हासिल करते रहें, छीनते रहें! उनके मानव संसाधनों का सस्ती मजदूरी के रूप में उपयोग करते रहें, और जरूरतें पूरी होने पर लात मारकर बाहर कर दें! क्या यही 21-वीं सदी का न्यू वर्ल्ड ऑर्डर है! विश्व की सबसे अधिक जनसंख्या, 145 करोङ-वाला देश भारत, विकसित राष्ट्रों की नजर में सबसे बङी उपभोक्ता मंडी! हम इस पिक्चर में कहाँ फिट हो रहे हैं. गंभीर आत्मावलोकन  की आवश्यकता है.



[1] डंकी शब्द पंजाब के डुंकी शब्द से आया है, जिसका मतलब होता है एक जगह से दूसरी जगह कूदना.

© दयाराम वर्मा, जयपुर (राज.), 10 फरवरी, 2025

 

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