व्यंग्य: झटका रपट

सुना है, हाल ही में यू-ट्यूब पर नेता प्रतिपक्ष के एक भाषण से बिहार में समस्तीपुर के सोनूपुर निवासी एक दूध बेचने वाले युवक को अइसा झटका लगा कि उसके हाथों से दूध की बाल्टी गिर गई. पूरा पाँच लीटर दूध बिखर गया! पचास रूपये प्रति लीटर के भाव से दो सौ पचास रूपये का भारी भरकम नुकसान! महँगाई और बेरोजगारी के इस आफत-काल में वाकई यह बहुत बङा हादसा माना जाना चाहिए. भला हो उस युवक के शुभचिंतकों का, जो उन्होंने उसे थाने जाकर रपट लिखाने की सही सलाह दी. एक बात तो तय है कि उस सज्जन का इस हादसे से पूर्व कभी पुलिस से वास्ता नहीं पङा था और ना ही उन्होंने पुलिस की छवि की छीछालेदर करने वाले साहित्य या फिल्में देखी थीं-लिहाजा उनका कानून पर विश्वास अटूट था.
तो हुआ ये कि जैसे ही पीङित महाशय थाने पहुँचे-उनके साथ हुई इस जघन्य वारदात को सुनकर मुंशी से लेकर थानेदार तक के रोंगटे खङे हो गए और वहीं के वहीं तत्काल एफआईआर दर्ज हो गई. अब नेताजी होंगे नेता प्रतिपक्ष, होंगे प्रभावशाली व्यक्ति! आम आदमी की भी तो कोई हैसियत है. उसके साथ हुई नाइंसाफी की फिक्र यदि पुलिस नहीं करेगी तो कौन करेगा. पुलिस की इस कार्रवाई के बाद अब किसी को सवाल नहीं करना चाहिए कि आम आदमी के अच्छे दिन आए क्या? भला इससे बङा और प्रमाण क्या चाहिए आपको!
पचहत्तर साल हो गए देश को आजाद हुए, हिंदुस्तान की पुलिस से जनता सदा ख़फ़ा-ख़फ़ा रही है. बङे-बङे कांड हो जाते हैं, दिन दहाङे लूट, चोरी, सीनाजोरी, छींटाकशी, नकबजनी, बलात्कार और हत्या तक हो जाती है, होती रहती है, होती रहेगी. लेकिन क्या मजाल सीधे-सीधे प्रथम दृष्टया, प्रथम सूचना रपट यानि एफआईआर दर्ज हो जाए! एङी-चोटी का जोर लगाना पङता है-जनाब. अक्सर गाँधी जी एक जेब से चलकर दूसरी जेब में प्रवेश करते हैं तब कहीं जाकर मुंशी जी की कलम अंगङाई लेती है. संवेदनशील मामलों में तो जान पहचान के मंत्री से लेकर संतरी, विधायक से लेकर सांसद तक के यहाँ तमाम नए-पुराने जूते-चप्पल घिसाने पङते हैं-तिस पर भी गारंटी नहीं. महिलाओं या छोटी जात वालों के साथ रसूखदारों की ज्यादती के विरुद्ध रपट लिखाने की नौबत आन पङे तो पूछो मत. जब तक मुद्दा सङकों पर सर पटक-पटक कर लहूलुहान न हो जाए, नारे बाजी, पत्थरबाजी, धरना-प्रदर्शन से पब्लिक शासन-प्रशासन की सुकोमल नाक में नजला न कर दे, क्या मजाल, एफआईआर दर्ज हो जाए!
बॉलिवुड से टॉलिवुड तक की फिल्में और टी.वी. धारावाहिक तो पुलिस की इस क़दीम विरासत की ह्रदय की पेंदी से आभारी रहती रही है. उक्त विशिष्ट पुलसिया कार्य शैली की जन-जनार्दन में, दूध में पानी और आटे में नमक जैसी सहज स्वीकृति है. लेकिन समस्तीपुर के अमुक थाने ने 250 रूपये के नुकसान पर एफआईआर दर्ज कर, हमारी वर्षों की आस्था, परंपरा और अटूट विश्वास की चूलें हिला दीं-इसमें तनिक भी शक-ओ-शुब्हा नहीं. इस लिहाज से सरपट लिख दी गई यह रपट वाकई एक ऐतिहासिक गजट है.
इस नायाब रूदाद[1] की नूरानी रोशनी में न केवल आम और खास को बल्कि, कानून को बनाने वालों, लागू करनेवालों, परिभाषित करने वालों, कोर्ट कचहरी में बहस करने वाले अधिवक्ताओं और मीलॉर्ड तक को एक नई दिशा और दृष्टि मिल गई है. अब उन छुटभैये टी.वी. एंकर्स और यू-ट्यूबर्स की खैर नहीं, जो जान बूझकर टी.आर.पी. बटोरने के चक्कर में ऊल-जलूल थंबनेल लगाकर खबरें परोसते हैं. राई जितनी खबर का पहाङ बना डालते हैं, हर बङे ब्रेक को छोटा और हर छोटी खबर को बङी बताकर, ड्राइंग रूम में ऐसी सनसनी फैला देते हैं कि कभी रोमांच तो कभी खौफ के साये में मिस्टर वागले सोफे से फेविकोल की तरह चिपके रहते हैं. उछल-कूद और चीख-पुकार की सर्कस से दर्शकों को न केवल सकते में बल्कि कोमा में पहुँचा देने का हर संभव प्रयास करने वाले खबर-खजूरो सावधान! अब सुन लइयो, जे तुहार खबर सुनकर भौजाई को सदमा लग गयो तौं? सब्जी जल सकती है, और हो सकता है सब्जी आलू-बैंगन की न होकर महंगे मटर-पनीर की हो! दूध उफन सकता है. काँच का कीमती क्रॉकरी सेट हाथ से गिर कर चकनाचूर हो सकता है, अंतहीन व्यापक संंभावनाएं हैं.
किसी व्यक्ति को उसके भाषण के किसी अंश से किसी अन्य व्यक्ति को पहुँचे मानसिक आघात और उसकी नैसर्गिक प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप हुई किसी भी प्रकार की भौतिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक या आध्यात्मिक हानि के लिए जिम्मेवार ठहराया जा सकता है. इस प्रकार के शाब्दिक आघात को आपराधिक श्रेणी में शामिल कर लिए जाने के बाद, सीख लेते हुए अंट शंट बोलकर चल देने वाले नेताओं को अब दो बार सोचना होगा. साली और बीबी पर ‘साली ने जीजा से कहा, जीजा जी मैं पास हो गई मिठाई खिलाओ’ और ‘एजी सुणो हो..’ सरीखी हास्य रचनाएं सुना-सुनाकर महफिल लूटने वाले हास्य कवि, परम आदरणीय प्रदीप चौबे और सुरेंद्र शर्मा के शागिर्द, नई पीढ़ी के हास्य कवियों! उनकी तो जैसे-तैसे कट गई, तुम्हें अतिरिक्त सावधानी बरतनी होगी. जाने तुम्हारी कौनसी लाइन-कब किस मुहतरमा के दिल से सीधी जा टकराए. और मामला शोहर से होते हुए शोहदों तक जा पहुँचे. मुहतरमा की शान में गुस्ताखी की रपट तो होगी ही, हो सकता है शेष उम्र बैसाखियों के सहारे कवि सम्मेलनों में शिरकत करना पङे.
कुल मिलाकर, अब वह दिन दूर नहीं जब रामलाल को भी एफआईआर करवाकर न्याय की गुहार लगाने का मौका मिल जाएगा, जिसकी भूरी भैंस का दूध, देश के लोकप्रिय नेता के उस भाषण को सुनने के बाद थनों में ही सूख गया, जिसमें कहा गया था कि भूरी की जोड़ीदार, काली भैंस को कोई विपक्षी नेता खोलकर ले जाने वाला है.
© दयाराम वर्मा, जयपुर (राज.) 02 फरवरी, 2025
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सौजन्य-दैनिक भास्कर |
bahut achhi kavita h aajkal ke time me
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए महत्वपूर्ण है
हटाएंEk sateek tippni, awesome
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए महत्वपूर्ण है
हटाएंवर्तमान स्थिति व प्रशासन की घूसखोरी और व्यंग्य अच्छे हैं
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए महत्वपूर्ण है
हटाएंसर गजब लिखा है। दूरदर्शन पर चल रहे किसी पुराने धारावाहिक , जिसमें कि पंकज कपूर कलाकार हो, पढ़कर लगा वो देख रहा हूं। बहुत दिनों बाद सेंसर मैं अटके रहने के बाद रिलीज हुई फिल्म मोहल्ला अस्सी कहीं मिले तो देखिएगा। लिखने का मजा ओर दुगना हो जाएगा।
जवाब देंहटाएंहरीश अग्रवाल।
धन्यवाद, आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए महत्वपूर्ण है
हटाएंबहुत सुंदर सर। महसूस हुआ जैसे दूरदर्शन पर कोई धारावाहिक देख रहा हूं, जिसमें पंकज कपूर हीरो है या कोई मोहल्ला अस्सी जैसी फिल्म, जो कि कई वर्षों तक सेंसर मैं अटकने के बाद रिलीज हुई थी।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए महत्वपूर्ण है
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