महाकुंभ हादसा और दो सवाल
28 जनवरी, 2025 रात करीब 1 ½ बजे, मौनी अमावस्या के स्नान से पहले, महाकुंभ में प्रयागराज के ‘संगम नोज’ इलाके में मची भगदङ में बहुत से लोग मारे गए. बहुत से अभी भी लापता बतलाए
जा रहे हैं. उनके परिजन कभी इस अस्पताल तो कभी उस अस्पताल, कभी
इस चौकी तो कभी उस चौकी भटक रहे हैं, लेकिन कहीं से कोई
संतोषजनक जवाब या खबर नहीं मिल रही. जैसा कि, उत्तरप्रदेश
सरकार द्वारा प्रचारित किया जा रहा है, 13 जनवरी,
2025 से लेकर 26 फरवरी, 2025 तक 45 दिन चलने वाले इस महा समागम में देश-विदेश के
लगभग चालीस करोङ लोगों के आने की संभावना के बरअक्स सौ करोङ लोगों के लिए समुचित व्यवस्था
है. लेकिन जिन परिस्थितियों में भगदङ मची, लोग कुचले और मारे
गए, लापता हो गए वह अत्यंत दुखद और अफसोसनाक है. यह भी कहा
जा रहा है कि भगदङ एक जगह न होकर तीन जगहों पर हुई-जिनमें झूंसी और सेक्टर-21
का संगम लोअर मार्ग भी शामिल है.
दुर्घटना के एक सप्ताह बाद भी सरकार की ओर से न तो मरने वालों के सही आँकङे प्रस्तुत किए जा रहे हैं, न ही लापता लोगों के. यह स्थिति दिन प्रति दिन घायल, मृत और लापता लोगों के परिजनों की तकलीफ और दर्द के जख्मों को और गहरा करती जा रही है.
दूसरी और सोशल मीडिया पर इस हादसे के पीङित लोगों और प्रत्यक्षदर्शियों के जो साक्षात्कार और बयान छनकर आ रहे हैं, उनसे उत्तरप्रदेश सरकार के दावों के उलट, महाकुंभ की चाक चौबंद व्यवस्था का खोखलापन स्पष्ट नजर आ रहा है. लापता लोगों के बारे में शासन-प्रशासन से अपेक्षित सहायता और आश्वासन न मिलने पर, लोग बुरी तरह से छुब्ध हैं, आक्रोशित हैं, पस्त और लाचार हैं.
यह दुर्घटना क्यों हुई, इसके क्या कारण रहे? क्या इसे रोका जा सकता था? व्यवस्थाओं में कौनसी कमी रह गई थी? दुर्घटना के बाद हालात को बेहतर तरीके से कैसे संभाला जा सकता था? ये सवाल तो जरूरी हैं ही. यह और भी अधिक जरूरी हो जाता है कि हादसे के बाद पुलिस और प्रशासन, पीड़ितों के साथ पूरी संवेदना के साथ पेश आए और उनका हर प्रकार से सहयोग करे. दुर्घटनाएं, पूछ कर नहीं आती लेकिन बाद की परिस्थितियों को तो संभाला जा सकता है. भारत विश्व का सर्वाधिक आबादी वाला देश होने के साथ-साथ एक अल्प विकसित देश भी है. बहुत बङी संख्या में लोग गरीब हैं. लेकिन यहाँ धार्मिक सत्संग, मेले और उत्सव प्राय: हर प्रांत में होते रहते हैं. इनमें कुछ एक हजार से लेकर लाखों की संख्या में श्रद्धालु एकत्र होते हैं. पूजा-अर्चना होती है, प्रवचन सुने जाते हैं, पवित्र स्नान किए जाते हैं और सामूहिक लंगर में भोजन किया जाता है.
कई बार ऐसे आयोजनों में भगदङ और अव्यवस्था भी हो जाती है. जैसे हाल ही में 2 जुलाई 2024 को उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में एक हिंदू धार्मिक आयोजन में भगदड़ मच गई थी. इसमें कम से कम 123 लोगों की मौत हो गई, जिनमें अधिकांश महिलाएँ और बच्चे थे. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उस सत्संग समागम में अस्सी हजार लोगों के आने की संभावना थी लेकिन ढाई लाख लोग आ गए. मात्र 2.5 लाख लोगों के जमावड़े के बीच थोङे से समय में मची भगदङ ने 123 लोगों की जान ले ली. इस छोटी सी उपस्थिति की प्रयागराज की करोङों की भीङ से कोई तुलना नहीं हो सकती. यदि अव्यवस्था, बदइंतजामी या कोई अन्य कारण, 2.5 लाख की अपेक्षाकृत बहुत छोटी भीङ में इतने बङे हादसे का सबब बन सकता है तो महाकुंभ तो इससे सौ गुना अधिक भीङ है. वहाँ के इंतजाम भी तो सौ गुना बङे स्तर पर होने चाहिए थे!
भारत में ऐसी अनेक संस्थाएं और संप्रदाय हैं जिनके धार्मिक या सामाजिक आयोजन प्राय: होते रहते हैं, जहाँ लाखों की भीङ जुटती है. लेकिन उनमें कई आयोजन, अत्यंत सुव्यवस्थित और अनुशासित तरीके से होते हैं. जगह-जगह पूछताछ केंद्र, शानदार यातायात और पार्किंग प्रबंधन, आसपास के सभी रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों पर धार्मिक स्थल तक लाने-ले जाने के लिए स्पेशल बस सेवाएं और वहीं पर श्रद्धालुओं का मार्गदर्शन करने से लेकर मदद करने तक, पर्याप्त संख्या में सेवादारों की मौजूदगी. बुजुर्गों के लिए व्हील चेयर, स्पेशल फेरी सेवाएं, बैठने के लिए कुर्सियां और चाय-नाश्ते की सेवा! इस प्रकार के प्रबंध केवल स्थानीय पुलिस और प्रशासन के सीमित कर्मियों द्वारा संभव नहीं हो सकते बल्कि संभव होते हैं, हजारों समर्पित और प्रशिक्षित सेवादारों की चप्पे-चप्पे पर उपस्थित के द्वारा. उनकी 24-घंटे, तन-मन से अथक सेवा के द्वारा. ऐसे आयोजनों में हमें, हर पल विनम्र भाव से, मार्गदर्शन और सहायता को तत्पर हजारों सेवादार, भागते-दौङते, अपनी सेवाएं अर्पित करते नजर आएंगे.
यदि इस बात पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि इस महापर्व में न केवल सरकार बल्कि आम जनता, आयोजकों, प्रायोजनों सभी ने इस महत्वपूर्ण बिंदु की अनदेखी की. आयोजकों को छोटे-छोटे धार्मिक समागमों-सत्संगों से भीङ नियंत्रण, अनुशासन और सेवाभाव सीखना चाहिए था. सवाल (1) यदि लाखों की भीङ को नियंत्रित करने के लिए, हजारों की संख्या में सेवादार मौजूद हो सकते हैं तो करोङों की भीङ के लिए लाखों समर्पित और प्रशिक्षित सेवादारों क्यों नहीं?
हादसे में जो लोग मारे गए, वे किसी से शिकायत करने नहीं आएंगे. लेकिन उनके रोते-बिलखते परिजन आते हैं-गुहार लगाते हैं-गिड़गिड़ाते हैं. उस वक्त सबसे अधिक सहानुभूति, मदद और सही सूचना की उनको जरूरत होती है. करोङों लोगों की व्यवस्था करने वाली सरकार के लिए, हजार-पाँच सौ लोगों के लिए क्या इतना भर नहीं हो सकता कि वे घटना स्थल पर ही विशेष शिविर लगा कर, उनकी शिकायत को दर्ज कर लें. संभावित मृत या लापता लोगों की फोटो, नाम, लिंग, उम्र, संपर्क सूत्र व पता आदि की सूची के आधार पर, पुलिस-अस्पताल और परिजनों का एक विशेष नेटवर्क बनाकर, दूरदर्शन और अन्य टी.वी. चैनलों के माध्यम से जानकारी को सार्वजनिक करें, डेडिकेटेड व्हाट्सएप ग्रुप बनाकर जानकारी साझा करें, जो लगातार अद्यतन की जाए. इस प्रकार के उपायों से सभी अफवाहों पर तत्काल विराम लग सकता है और पीड़ितों की परेशानी व दर्द को बहुत हद तक कम किया जा सकता है. सवाल (2) क्या इस प्रकार की पारदर्शी, सूचना प्रणाली महाकुंभ हादसे के संदर्भ में कहीं नजर आ रही है?
© दयाराम वर्मा, जयपुर. 07 फरवरी, 2025
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