कविता: गाँधी-वध
मिस्टर गांधी, तुम पर लगे हैं
तीन संगीन जुर्म
पहला-रोज़-रोज़ की तुम्हारी भङकाऊ प्रार्थना
“ईश्वर, अल्लाह तेरो नाम…”
दूसरा-लोगों को दिग्भ्रमित करने वाली ये अपील
“सबको सम्मति दे भगवान … ”
और तीसरा-“सत्य और अहिंसा”
जैसे ख़तरनाक शस्त्रों का बार-बार प्रयोग!
जानते हो इस देश पर
हज़ारों साल, विदेशियों ने राज किया
जमकर लूटा-खसोटा और ढाए बे-इंतहा ज़ुल्म
लेकिन किसी ने
रिआया के धर्म और नैतिकता के जङ-विचारों के साथ
ऐसी छेङ-छाङ, ऐसी धृष्टता कभी नहीं की
बल्कि इन्हें प्रश्रय और प्रोत्साहन ही दिया
और रहे जन-क्रांतियों से महफ़ूज़!
और एक तुम हो कि
न केवल अंग्रेजों को खदेङा
बल्कि जनता के दिल-ओ-दिमाग़ में
अपने ऊल-जलूल सिद्धांत भी ढूंस-ढूंस कर भर दिए
ज़रूरी है अब इनका समूल ख़ात्मा!
और जरूरी है राजा के लिए
अपने समय के राजधर्म की पालना
तदनुसार, दरबार की जूरी ने पाया है कि
तुम्हारी हत्या
हत्या नहीं, एक न्यायोचित वध था
इस संबंध में
सभी प्राथमिक साक्ष्य जुटा लिए गए हैं
तुम्हारे विरुद्ध तमाम गवाहों के बयान हो चुके हैं दर्ज
और फ़ैसला भी लिखा जा चुका है
बस इंतिज़ार है
एक उपयुक्त तारीख़ का!
© दयाराम वर्मा, जयपुर (राज.) 11अप्रैल, 2025
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