कविता: सुनो-सच
सुनो-सच!
पहले तो वे करेंगे-तुम्हारी उपेक्षा
तत्पश्चात लाया जाएगा, निंदा प्रस्ताव
बुना जाएगा तुम्हारे इर्द-गिर्द, दमघोंटू मख़ौल-माहौल!
यदि नहीं हुए हतोत्साहित
आलोचना और बदनामी, कूद पङेंगी मैदान में
धमकी, घुङकी, कुङकी, लालच, मार-पीट
तोङ-फोङ, अपहरण, शीलहरण ..और न जाने क्या-क्या
घेर लेंगे तुम्हें चारों ओर!
यदि नहीं टूटे अब भी
घोषित कर दिया जाएगा तुम्हें-देशद्रोही
खूंखार आदतन अपराधी, और संभवतया गद्दार भी
और कस दिया जाएगा-कानूनी शिकंजा!
इन सबसे गुजरने के बाद भी
यदि तुमने नहीं टेके घुटने
एनकाउंटर के बहुत से तरीकों में से
किसी एक का किया जा सकता है-तुम पर प्रयोग
तो सच
कहो अब क्या कहते हो!
अंधेरी कोठरी का दरवाजा चरमराया
सन्नाटे को चीरती हुई
एक बेखौफ- बुलंद आवाज गूँज उठी
सच-सच-सच!
© दयाराम वर्मा, जयपुर (राज.) 16 अप्रैल, 2025
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