कविता: तीन पाठशालाएँ



सभ्यता के सोपान पर
जैसे-जैसे इंसान आगे बढ़ा
तीन तरह की पाठशालाएँ विकसित हुईं!


पहली पाठशाला में पढ़ाया गया
"आ" यानि आस्था, यहाँ समझाया गया
अवतार पुरुषों, पैगंबरों और ईश्वर के दूतों ने
पवित्र ग्रंथों के माध्यम से जो कहा, वही अंतिम सत्य है
और-इनके शिष्यों ने
अपनी दोनों आँखें बंद कर लीं!


दूसरी में वितरित किया गया भय
कहा गया-"आ" से होता है केवल और केवल आतंक
उनका दृढ़ मत था, यदि स्वयं को बचाना है
तो औरों को भयभीत करना होगा
और-इनके शिष्यों ने
दोनों आँखों के साथ-साथ कान भी बंद कर लिए!


तीसरी में थे तर्क और तथ्य
उन्होंने सिद्ध किया “आ" से होता है आविष्कार
उनका सिद्धांत था-क्या, क्यों और कैसे…
जब तक देख न लो-समझ न लो, नहीं मानना
और-इनके शिष्यों ने
न केवल दोनों आँखें बल्कि कान भी खोलकर रखे!


© दयाराम वर्मा, जयपुर (राज.) 09 अप्रैल, 2025


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