कविता: शीशमहल बनाम राजमहल
शीशमहल सजा सबसे न्यारा
वियतनामी मारबल से दमके आंगन प्यारा-प्यारा
रेशमी परदे ढाते कमाल
काष्ठ-कला, असबाब की है अद्भुत, बेमिसाल
मचल उठा ‘राजमहल’ का रौनक लाल!
लूंगा लुत्फ स्पा का, पहन लंगोट
पेलूंगा डंड जिम में, ट्रेड-मील पर दौङ लगाऊँगा
उठाकर डंबल-संबल
मैं भी सिक्स-पैक बनाऊँगा
छपती सुर्खियां शीशमहल की, दिल्ली-पटना-भोपाल
तङप उठा रौनक लाल!
दस रुपल्ली वाला टांगकर पेन
प्रेस कांफ्रेंस में, फोटो स्टाइलिश खिंचवाऊँगा
तरणताल में तैरूँगा, तन-बदन, मल-मल नहाऊँगा
डूब गया रौनक सपनों में शाम-ओ-सहर
लगती आँख बस पहर दो पहर!
डालूँगा पैरों में स्लीपर सस्ती
बन आम आदमी, वोटर रिझाऊँगा
पहनूँगा ‘अतिरिक्त बङी’ चैक वाली कमीज
हाथों में झाङू, गुलूबंद गले में अटकाऊँगा
शीशमहल जब मैं जाऊँगा!
सुना है वहाँ, है एक खूबसूरत मिनी बार
सुरा पान, टकराते जाम, आह! करना होगा दीदार
मन डोल गया, रौनक लाल सच बोल गया
शीशमहल अवश्य जाऊँगा
चैन तब कहीं पाऊँगा!
राजमहल जाऊँगा
वरना खाना नहीं खाऊँगा
कभी टोयोटा, कभी मर्सिडीज, कभी लैंड-क्रूजर
एक से बढ़कर एक, गाङी दौड़ाऊँगा
मचल उठा शीशमहल का नौनिहाल
नटखट, जिद्दी शिशु पाल!
नहीं रखना बटुआ-सटुआ
टांगूँगा कंधे पर मैं तो, झोला झालरदार
पहनूँगा नित जूते नए, बदलूँगा टाई-सूट कई बार
शान-ओ-शौकत, दुनिया को दिखलाऊँगा
राजमहल जरूर जाऊँगा!
सुनो माताओं, सुनो बहनों
देखो कालीन बिछा राज दरबार
लगे हैं जिसमें बाईस कैरेट सोने के तार
झूमर हीरे जङे, बङी दूर से मारे हैं चमकार
देखेंगे जाकर हम भी ये शाहकार!
स्वांग फकीरी, असल अमीरी
जुमलों की भरमार
हो सवार ‘एयर-इंडिया-वन’ में
उङ जाऊँगा आसमान, सात समंदर पार
करूंगा सैर देश, दुनिया-जहान की
जपेंगे माला ट्रम्प, पुतिन, जिनपिंग मेरे नाम की!
ईडी, सीबीआई, इनकम-टैक्स, केंचुआ
रिमोट सभी का हथियाऊँगा
रोब-दाब, धाक-धौंस, प्रतिपक्ष पर खूब जमाऊँगा
गर राजमहल नहीं जा पाऊँगा
बन जाऊँगा आपदा, कर दूंगा बेहाल
सनक गया चिरंजीवी शिशु पाल!
© दयाराम वर्मा, जयपुर. 14 जनवरी, 2025
© दयाराम वर्मा, जयपुर. 14 जनवरी, 2025
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें