बाल कविता: रिमझिम बादल बरसा

रिमझिम-रिमझिम बादल बरसे
पेङ-पत्तियां, बाग-बगीचे, हुलसित-पुलकित हरखे
गौरैया फुदके, मेंढक टरके!
छत, आंगन धूप न आए
उमङ-घुमङ बादल छाए, सूरज बैठा मुँह छिपाए
गीले कपङे कहाँ सुखाएं!
गलियाँ डूबीं, डूबे खेत खलिहान
कीचङ में फंसी बैल गाङी, हो रही खींचतान
हुए लबालब ताल-तलैया, नोनू चलाए कागज की नैया!
छुपा रोमी बिस्तर में, घन-गर्जन से डरता
टप्पू का टप-टप टपरा टपकता, झंडू का झोंपङा झरता
मारे ठंड के, ‘मोती’ बेचारा कूँ-कूँ करता!
खिङकी- दरवाजे फूले न समाएं
जाम हुआ गेट संडास का, फंस गए दद्दू जोर लगाएं
अंदर बैठे चीखें चिल्लाएं!
© दयाराम वर्मा, जयपुर. 17 जनवरी, 2025
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें