समीक्षा: चौपाल की कहावतें :- लेखक डॉ. मोहन तिवारी ‘आनंद’
प्रकाशक लोक साहित्य प्रकाशन 17-ए, शिवकुटी, इलाहाबाद , प्रथम संस्कारण 2017

डॉ. मोहन तिवारी-भोपाल
प्राचीन काल में कहावतों और लोकोक्तियों का समाज में न केवल एक महत्वपूर्ण स्थान था वरन वे समय की कसौटी पर जाँचे परखे कटु सत्य के रूप में स्वीकार्य थी। यह वह दौर था जब विज्ञान किसी मौसम या बीमारी की भविष्यवाणी करने के लिए उपलब्ध नहीं था। प्राकृतिक आपदा हो, बारिश या अकाल हो, बीमारी हो या कोई शुभ कार्य के लिए प्रस्थान करना हो, इंसान में सदैव परिणाम के पूर्वानुमान की जिज्ञासा रही है।
आदिकाल में इंसान की पशु-पक्षियों से अति निकटता रही। वह उनकी हर गतिविधि को देखता और परखता रहा। कभी कभी उनकी विशेष आवाज, कोलाहल या असामान्य व्यवहार, भविष्य में होने वाली किसी घटना से जुड़ जाते। जब मनुष्य ने इन संकेतों का बार-बार विश्लेषण किया और जो निष्कर्ष अधिकांशत: सच साबित हुए तो उनसे मनुष्य ने एक अवधारणा का निर्माण किया होगा। शैने-शैने इन अवधारणाओं ने लोक कहावतों का रूप ले लिया और वे पीढ़ी दर पीढ़ी विरासत के रूप में सौंपी जाती रही। गाय व घोड़े के शुभ शकुन पर कवि ने लिखा है, “दूध पिलाती शिशु को, दाएँ दिखवे गाय। अति शुभकारी शकुन है, पंडित रहे बताय॥” अर्थात यदि यात्रा पर जाते समय गाय दाईं ओर से शिशु को दूध पिलाती हुई दिखे तो शुभ शकुन है। “दाएँ पाँव से अश्व यदि, धरती खोदे जोय। शुभकारी है शकुन यह, यात्रा मंगल होय॥” अर्थात यदि बाईं ओर से घोड़े के हिनहिनाने की आवाज सुनाई ड़े तो शुभ माना जाता है।
इसी प्रकार कौवे को लेकर लिखा है, “गृह-प्रवेश करते समय, कौआ बोले बैन। तो शुभ मानो मिलेगा, लाभ और सुख-चैन॥” अर्थात, यदि आप घर में प्रवेश कर रहे हैं और कौआ आकार बोले तो शुभ शकुन है। आपको सुख और शांति की प्राप्ति होगी। मेघों पर कवि ने लिखा है, “भाद्र बड़ी एकादशी, बदरा नहीं दिखायं। चार माह बरसात के, सूखे-सूखे जायं॥” अर्थात, यदि भद्रपद कृष्ण पाक्स की एकादशी को आसमान निर्मल रहे, अर्थात बादल न हों और चंद्रमा पर श्वेत घेरा दिखे तो चौमासा सूखा जाएगा। आज आधुनिक विज्ञान के आधार पर मनुष्य ने अनुभव जन्य कहावतों को भले ही बिसरा दिया हो लेकिन बहुतार्थ में वे आज भी प्रासांगिक है। यद्यपि शकुन, अपशुकन की धारणा को विद्वानों की एक विचारधारा, अवैज्ञानिक, अतार्किक और अंधविश्वास से जोड़कर देखती है तथापि समय की कसौटी पर बार-बार खरी उतरती बहुत सी ऐसी लोक कहावतें यह तो प्रमाणित करती ही हैं कि पशु-पक्षियों में कुछ ऐसी अज्ञात शक्तियाँ या विशेषताएँ होती हैं जो उन्हे आने वाले किसी खतरे या प्राकृतिक परिवर्तन का पूर्व-बोध करा देती है।
डॉ. मोहन तिवारी रचित,‘चौपाल की कहावतें’ मुख्य रूप से ग्रामीण अंचल के कृषकों और कृषि मजदूरों से संकलित सैंकड़ों दुर्लभ कहावतों का एक अनूठा दस्तावेज़ है। यद्यपि इस प्रकार की कहावतें हर भाषा और क्षेत्र में कमोबेश विभिन्न स्वरूपों में उपलब्ध होंगी लेकिन डॉ. मोहन तिवारी ने ग्रामीण क्षेत्रों में भ्रमण कर पुरानी पीढ़ी के लोगों से न केवल इनका संकलन किया बल्कि उन्हे दोहा-छंद की सधी हुई उत्कृष्ट साहित्यिक विधा में ढाला। इस दृष्टि से यह एक पठनीय व संग्रहणीय कृति है और विलुप्त होती जा रही हमारी दुर्लभ कहावतों को चिरकाल तक जीवित रखने में सक्षम और सफल है। ऐसी अनुभवजन्य कृति के सृजन के लिए डॉ. मोहन तिवारी ‘आनंद’ को साधुवाद और अनंत शुभकामनाएं।
समीक्षक दयाराम वर्मा, 02.10.2018 भोपाल
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