परिचय: डॉ. ज्योत्सना राजावत: छोटे पंख-ऊंची उड़ान



डॉ. ज्योत्सना राजावत


हाल ही में डॉ. ज्योत्सना राजावत रचित दो काव्य संग्रहों का पढ़ने का सुअवसर प्राप्त हुआ। प्रथम, ‘संदर्भ प्रकाशन’ भोपाल से प्रकाशित ‘अंतहीन पथ’ और दूसरा वर्ष 2016 में जे.एम.डी. नई दिल्ली से प्रकाशित ‘हाइकु छटा’। ‘अंतहीन पथ’ की रचनाओं में पिता, माँ, बेटी, भाई जैसे रिश्तों की प्रकृतिजन्य अंतरंगता सुवासित है तो वहीं किसान, अनाथ, शिक्षक और मजदूर के जीवित उद्घोष हैं। दूसरी ओर ‘ख़्वाहिश’, ‘स्त्री का अंतर्मन’, ‘शक’, ‘दिया’, ‘माँ आयेगी’ सरीखी दर्शन और चिंतन के धरातल पर खींची अर्थपूर्ण लकीरें भी हैं। समग्र रूप से यह संग्रह किसी एक विषय पर केन्द्रित न होकर कवयित्री की कल्पनाओं और संवेदनाओं के असीम विस्तार का समागम प्रतीत होता है।

संग्रह की कविताओं से उद्धृत कुछ पंक्तियाँ मात्र ही इनकी काव्यात्मक गहराई और पैनेपन को पुष्ट करने के लिए पर्याप्त हैं। यथा, संग्रह के आगाज में ‘आईना’, अपने स्वभाव के अनुरूप ‘मुखौटे’ को अनावृत करते हुए कहता है “देखता हूँ हर रोज सौन्दर्य तुम्हारा/ जो ढका रहता है अनेक परतों के आवरण में/तुम्हारी हकीकत और तुम्हारा बनावटीपन/ दोनों से भली भांति परिचित हूँ”। क्या कभी हँसी भी एक ठोस हिम खंड सी जड़ हो सकती है? हाँ, लेकिन कवयित्री को हँसी का यह रूप स्वीकार नहीं और वह कह उठती है, ‘ठोस हिम खंड सी हँसी को पिघल जाने दो/ बन जाने दो सहस्र धारा……… तुम्हारी हँसी अमृत रस है/ किसी की खुशी के लिए/ किसी की चाहत के लिए/ आज गम को बिखर जाने दो.....’ इसी प्रकार ‘अंतहीन पथ’ कविता की पंक्तियाँ.... ‘हृदय में चंचलता/ विचारों में व्याकुलता लिए/ ढूँढती हूँ पथ/ बंद आँखों से/ अज्ञानता की लाठी से/ अविवेकी बन/ झूठे ढकोसलों संग/ जीवन का यथार्थ जाने बिना/ प्रभु को पहचाने बिना/ अंतहीन पथ पर/ ढूँढने चली अपना पथ...’ रचनाकार के लेखन का दर्शनीय फ़लक है।

दूसरा काव्य संग्रह ‘हाइकु छटा’ भी उतना ही अनूठा और अद्वितीय है। साहित्य की ‘हाइकु’ शैली का प्रादुर्भाव जापान में हुआ। तीन पंक्तियों में लिखी जानी वाली कविताओं में बिम्ब समीपता, इस शैली का मूल लक्षण है। पुस्तक की भूमिका लिखते हुए डॉ. विद्यालंकार ने हाइकु की बारीकियों और विशेषताओं का अत्यंत सारगर्भित शब्दों में जो वर्णन किया है उससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि इस विधा में रचना करना किसी सामान्य रचनाकार के लिए संभव नहीं।

हाइकु में उपयुक्त शब्दों का चयन, उनका क्रमागत अनुप्रयोग और अत्यंत सूक्ष्म कलेवर के साथ कवि हृदय की बात पाठक के अंत: मन तक सफलता पूर्वक पहुँचाने को डॉ. विद्यालंकार ने एक योगी की साधना से भी उच्चतर महत्व दिया है। यह अपने आप में बड़ी बात है। आलोच्य संग्रह में 62 शीर्षक और 10 हाइकु छटाएं हैं। संग्रह की कुछ रचनाएँ;

भूख: ‘कंगाली भूख/ निगल जाती/ बासी सूखी रोटियाँ; व्याकुल भूख/ तृप्ति पर लुटाती/ ढेरों आशीष; छोड़ के चिंता/ फिर सोती जी भर/ चैन की नींद’

हमारे नेता: ‘हमारे नेता/ स्वार्थी सत्ता लोलुप/मौका परस्त; खुद ही लूटें/ महमूद गजनवी/ बन कर देश; हरण करे/देश की अस्मिता को/ दुर्योधन सा; पूजें देवी सा/ भ्रष्टाचार का दैत्य/ चारों पहर; देश उत्थान/ सत्ता के खेल पर/ बना मोहरा’; हमारे नेता/ अपराधी नदियों/ के सिंधु बने’

बने कविता: ‘अनवरत/ तरंगित हो भाव/ बने कविता; पानी की बूंदें/ टपके आसमान से/ बने कविता; उड़े तितली/ फड़फड़ाये-झूमे/ बने कविता; बढ़े बेचैनी/ हो उथल-पुथल/ बने कविता; आयी आसमान/ से भोर की किरण/ बने कविता’

गांधी का पाठ; ‘सहमा सत्य/ घायल मानवता/ गाँधी को ढूँढे; गाँधी के घाट/ पर रोती अहिंसा/ ढूँढे वजूद; गाँधी का पाठ/ भूल गया इंसान/ करे दिखावा; अँग्रेजी भूत/ चढ़ा इंसान पर/ भूला वतन’

उक्त कविताओं के अवलोकन मात्र से डॉ. विद्यालंकार द्वारा रचनाकार के लिए की गई टिप्पणी पर किसी भी प्रकार की अतिशयोक्ति की संभावना समाप्त हो जाती है। निःसंदेह, प्रचलित भाषा और सरल शब्दावली के सहारे, रोचक काव्यात्मक शैली में गूँथी रचनाओं से कवयित्री ने उक्त दोनों ही काव्य संग्रहों में अपने मर्मस्पर्शी, संवेदनशील और बोधगम्य लेखन की परिपक्वता को सिद्ध किया है।

इन सबके इतर हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में विभिन्न पत्रिकाओं का प्रतिनिधि संपादन, शोध पत्र, समीक्षाएं, आलेख आदि का सतत लेखन, राजकीय सेवा और घर गृहस्थी की समानान्तर जिम्मेवारी का निर्वहन, निश्चित रूप से साहित्य के प्रति आपके अटूट लगाव, समर्पण और अत्यधिक मानसिक व शारीरिक ऊर्जा का प्रतिफल है।

आप साहित्य अकादमी भोपाल की पाठक मंच इकाई भोपाल की सक्रिय सदस्य भी हैं और इन्हें इनकी विशिष्ट साहित्यिक उपलब्धियों के मद्देनजर समय-समय पर अनेकों साहित्यिक सम्मान यथा ‘कालिदास एकेडमी एवं भवभूति समिति सम्मान’, ‘अखिल भारतीय साहित्य परिषद भिंड इकाई सम्मान’, ‘डॉ पी दत्त बर्थवाल समिति सम्मान’, ‘राष्ट्रीय कवि संगम एवं राष्ट्रीय महिला मंच ग्वालियर सम्मान’, ‘संस्कार भारती आगरा रंगोत्सव सम्मान’, ‘साहित्य सृजन एवं हिन्दी सेवी सम्मान लोकमंगल पत्रिका’, ‘नारी शक्ति सम्मान 2016 बेटी मंच ग्वालियर’, ‘सोशल रिसर्च फाउंडेशन की ओर से सम्मान’ आदि से नवाजा गया है। हिन्दी साहित्य में आप निरंतर इसी प्रकार अपना योगदान देती रहें। अनंत शुभकामनाएँ ।

समीक्षक- दयाराम वर्मा, ई- 5, कम्फर्ट गार्डन, चूना भट्टी, कोलार रोड, भोपाल- 462016 (मध्यप्रदेश) 23 अप्रैल, 2019

publication-साहित्य एक्सप्रेस ग्वालियर (मई, 2019)





2 टिप्‍पणियां:

  1. सर बेहद प्रसन्नता हुई जब मैंने आज अभी आपका मैसेज देखा मैं आपके इतने अच्छे लेखन के लिए सदैव आभारी रहूंगी और आपका अविस्मरणीय उपन्यास सदैव पाठकों के बीच में चर्चा का विषय रहता है

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  2. सर जितनी बार साहित्यिक गलियारा में आप द्वारा लिखित आलेख पढ़ती हूं मन प्रफुल्लित हो जाता है। बहुत-बहुत आभार 🙏 आदरणीय ,आपकी सारगर्भित लेखनी को नमन । डॉ ज्योत्स्ना सिंह राजावत

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