समीक्षा-एक लोहार की: (लघु कथा संग्रह)
लेखक- श्री घनश्याम मैथिल ‘अमृत’,
प्रकाशक: अपना प्रकाशन, भोपाल प्रथम संस्करण वर्ष 2017
‘कागजी घोड़े’ से आरंभ होकर ‘जड़ें’ तक का 91 लघुकथाओं का सफर एक पाठक के लिए ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी रास्ते पर दौड़ते हुए टट्टू की सवारी करने जैसा अनुभव है जहाँ इतने झटके लगते हैं कि यात्री की चूलें हिल उठती हैं। वर्तमान परिवेश, सामाजिक ताने-बाने, शासन-प्रशासन, धर्म और व्यापार की जड़ों को खाद बन पोषित करती विद्रूपताओं का असीम विस्तार पाठक के अंतस को बारंबार झकझोरता है, उद्वेलित और बैचेन करता है। गरीब के हिस्से में बचा खुचा ही आया है, चाहे वे उसके अधिकार हों या दो जून की रोटी। और ईज्जत! वह तो गरीब के पास होती ही कहाँ है? सच्चा शिल्पकार कौन? भोजन का धर्म, कलयुगी गुरु, स्मार्ट सिटी, गरीब की बेटी, यह कैसी सरहद, कराहती आवाज पर तालियाँ .... एक के बाद एक पेज पलटते हैं, पात्र और कथानक बदलते हैं लेकिन नहीं बदलती तो मज़लूमों की मजबूरी, अन्याय, अपमान और तिरस्कार में घुटता मौन आर्तनाद, चारों ओर पसरी निर्लज्ज सभ्यता!
मैथिल जी की कलम अलग-अलग रास्ते तय करती, हर बार दोगलेपन, ढोंग, चालाकी और ठगी के ढेर को कुरेद तीक्ष्ण सड़ांध वातावरण में फैला देती है। पाठक असहज होता है, उसमें रोष पैदा होता है, वह व्यथित होता है। छोटी छोटी बातों में लिपटी कड़वी सच्चाई उसकी सोच को दूर तक फैला देती है, वह आत्ममंथन पर विवश हो उठता है। स्वयं लेखक के शब्दों में “..... एक द्रवित करने वाली, करुण कथा या लोमहर्षक, समाज में मानवता को पशुता के निकट लाने वाली दुर्घटना को, मैं उसके उसी रूप में चित्रित कर बेनकाब करना चाहता हूँ .....”। रचनाकार एक लोहार की भांति समाज की विषमताओं के जंग लगे लोहे को दहकते अंगारों पर सुर्ख लाल होने तक गर्म करता है फिर सधे हुए हथौड़े से पीट-पीट कर उसे एक उपयोगी औज़ार की शक्ल देता है, और जैसे-जैसे लोहा ठंडा होता है, नई शक्ल में उसकी सुंदरता निखर उठती है। नि:संदेह इस कसौटी पर लेखक का प्रयास अत्यंत सफल रहा है।
इन्हीं सब के बीच मजबूत कलाईयाँ, सीता-रेखा, ब्रेव सिस्टर और आँखों वाले अंधे जैसे कथानक इस द्विंद के बरक्स फिर से सकारात्मक सृजन के लिए खड़े हो जाने का रचनाकर का अमूर्त संदेश, बड़े ही पुरजोर तरीके से बुलंद कर उठते हैं। संग्रह की हर कथा का समापन एक हथौड़े की चोट सा है। मन की गहराइओं में उतर कर अमिट छाप छोड़ जाने वाले अविस्मरणीय लघुकथा संग्रह के लिए आदरणीय घनश्याम जी मैथिल ‘अमृत’ का साधुवाद और अनंत शुभकमनाएं।
समीक्षक: दयाराम वर्मा.
Publication: दैनिक जागरण भोपाल
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