सुनो-सच!
पहले तो वे करेंगे-तुम्हारी उपेक्षा
तत्पश्चात लाया जाएगा, निंदा प्रस्ताव
बुना जाएगा तुम्हारे इर्द-गिर्द, दमघोंटू मख़ौल-माहौल!
यदि नहीं हुए हतोत्साहित
आलोचना और बदनामी, कूद पङेंगी मैदान में
धमकी, घुङकी, कुङकी, लालच, मार-पीट
तोङ-फोङ, अपहरण, शीलहरण ..और न जाने क्या-क्या
घेर लेंगे तुम्हें चारों ओर!
यदि नहीं टूटे अब भी
घोषित कर दिया जाएगा तुम्हें-देशद्रोही
खूंखार आदतन अपराधी, और संभवतया गद्दार भी
और कस दिया जाएगा-कानूनी शिकंजा!
इन सबसे गुजरने के बाद भी
यदि तुमने नहीं टेके घुटने
एनकाउंटर के बहुत से तरीकों में से
किसी एक का किया जा सकता है-तुम पर प्रयोग
तो सच
कहो अब क्या कहते हो!
अंधेरी कोठरी का दरवाजा चरमराया
सन्नाटे को चीरती हुई
एक बेखौफ- बुलंद आवाज गूँज उठी
सच-सच-सच!
© दयाराम वर्मा, जयपुर (राज.) 16 अप्रैल, 2025
कविता: गाँधी-वध
मिस्टर गांधी, तुम पर लगे हैं
तीन संगीन जुर्म
पहला-रोज़-रोज़ की तुम्हारी भङकाऊ प्रार्थना
“ईश्वर, अल्लाह तेरो नाम…”
दूसरा-लोगों को दिग्भ्रमित करने वाली ये अपील
“सबको सम्मति दे भगवान … ”
और तीसरा-“सत्य और अहिंसा”
जैसे ख़तरनाक शस्त्रों का बार-बार प्रयोग!
जानते हो इस देश पर
हज़ारों साल, विदेशियों ने राज किया
जमकर लूटा-खसोटा और ढाए बे-इंतहा ज़ुल्म
लेकिन किसी ने
रिआया के धर्म और नैतिकता के जङ-विचारों के साथ
ऐसी छेङ-छाङ, ऐसी धृष्टता कभी नहीं की
बल्कि इन्हें प्रश्रय और प्रोत्साहन ही दिया
और रहे जन-क्रांतियों से महफ़ूज़!
और एक तुम हो कि
न केवल अंग्रेजों को खदेङा
बल्कि जनता के दिल-ओ-दिमाग़ में
अपने ऊल-जलूल सिद्धांत भी ढूंस-ढूंस कर भर दिए
ज़रूरी है अब इनका समूल ख़ात्मा!
और जरूरी है राजा के लिए
अपने समय के राजधर्म की पालना
तदनुसार, दरबार की जूरी ने पाया है कि
तुम्हारी हत्या
हत्या नहीं, एक न्यायोचित वध था
इस संबंध में
सभी प्राथमिक साक्ष्य जुटा लिए गए हैं
तुम्हारे विरुद्ध तमाम गवाहों के बयान हो चुके हैं दर्ज
और फ़ैसला भी लिखा जा चुका है
बस इंतिज़ार है
एक उपयुक्त तारीख़ का!
© दयाराम वर्मा, जयपुर (राज.) 11अप्रैल, 2025
कविता: देहाती हाट
गरीब, असभ्य और अविकसित लोगों के
छोटे-छोटे देहाती हाट
लगते हैं खुले आसमान तले
लकङी के तख्तों और जूट की बोरियों पर
सजते हैं सङक किनारे
कपङे, जूते, हस्तशिल्प, सस्ती साड़ियां
रंग बिरंगे गुब्बारे
बच्चों के ट्रैक्टर और लारियाँ!
हाट की हवा में तैरती है
पसीने की बू और कच्चे मांस की गंध
वहाँ बिकते हैं
ताजा झींगे, केकड़े और मछलियाँ
मुर्गे-मुर्गियां, भेङ, बकरियाँ
बाँस, केन और जूट के थैले, टोपियाँ, टोकरियाँ
धान, गेहूँ, आलू, गोभी, बैंगन, मिर्च
ककड़ी, केले, संतरे ..!
फैले रहते हैं बेतरतीबी से
खुरपी, दरांती, हल, हंसिया वगैरह-वगैरह
घर और खेत, ढोर-डंगर, बदन और पेट
सभी की जरूरत का सामान
छोटी-छोटी खुशियाँ
मिल जाती हैं
गरीब, असभ्य और अविकसित लोगों के
छोटे-छोटे देहाती हाट में!
लेकिन
वहाँ नहीं मिलते
इंसानो के किफायती मशीनी विकल्प
फसल बोने से लेकर
काटने तक के स्वचालित उपकरण
एक साथ, हजारों लोगों के श्रम और रोजगार को
निगल जाने वाले इलेक्ट्रॉनिक गेजेट्स
और कृत्रिम-मेधा संपन्न रोबोट्स!
वहाँ नहीं मिलती
विलासिता, चकाचौंध, चमक-दमक, बनावट
नहीं बिकती
लूट-खसोट की योजनाएं
बर्बादी और तबाही की मिसाइलें
भय, आतंक, लालसा, वर्चस्व और विस्तार के
रक्त पिपासु बारूदी हथियार!
ये मिलते हैं तथाकथित
अमीर, सभ्य और विकसित मुल्कों के
विशाल आधुनिक बाजारों में!
© दयाराम वर्मा, जयपुर (राज.) 03 अप्रैल, 2025
कविता: तीन पाठशालाएँ
सभ्यता के सोपान पर
जैसे-जैसे इंसान आगे बढ़ा
तीन तरह की पाठशालाएँ विकसित हुईं!
पहली पाठशाला में पढ़ाया गया
"आ" यानि आस्था, यहाँ समझाया गया
अवतार पुरुषों, पैगंबरों और ईश्वर के दूतों ने
पवित्र ग्रंथों के माध्यम से जो कहा, वही अंतिम सत्य है
और-इनके शिष्यों ने
अपनी दोनों आँखें बंद कर लीं!
दूसरी में वितरित किया गया भय
कहा गया-"आ" से होता है केवल और केवल आतंक
उनका दृढ़ मत था, यदि स्वयं को बचाना है
तो औरों को भयभीत करना होगा
और-इनके शिष्यों ने
दोनों आँखों के साथ-साथ कान भी बंद कर लिए!
तीसरी में थे तर्क और तथ्य
उन्होंने सिद्ध किया “आ" से होता है आविष्कार
उनका सिद्धांत था-क्या, क्यों और कैसे…
जब तक देख न लो-समझ न लो, नहीं मानना
और-इनके शिष्यों ने
न केवल दोनों आँखें बल्कि कान भी खोलकर रखे!
© दयाराम वर्मा, जयपुर (राज.) 09 अप्रैल, 2025

कविता: एक नदी की देशना
नील वर्ण, देह धवल
वह थी अनन्य हिमसुता[1] वत्सल[2]
कूदती-फांदती, लहराती, इठलाती, गुनगुनाती
सहोदरी संग करती आँख-मिचौली
छू-छू जाती सुवासित पवन हमजोली
मल-मल खुशबू पादप, कंद-मूल, लताओं की
थी प्रियदर्शिनी अति मुग्ध, मदहोश
दौङ रही थी शैल-कंदराओं में
बेफ़िक्र बेलौस!
छाया था उस पर
अल्हड़, उन्मत्त यौवन का खुमार
भंवर बनाती, बल खाती, बेकाबू थी रफ़्तार
कल-कल करती, टकराती साहिल से
बज उठती पायल सी झंकार
निर्मल निर्झर जब गिरते, उसके आँचल-आगोश
खिल-खिल जाता किलकारी से मुखमंडल
भर जाता दुगुना जोश
चट्टानों से झगड़ती, गरजती, लरजती, फुफकारती
हटो, सागर प्रीतम से है मिलना मुझको
श्वास-श्वास पुकारती!
और तब अचानक एक जगह
कदम सभी पहाङियों के रुक गए
श्वेत-स्याम पयोधर, चेहरों पर उनके झुक गए
हिलाते रहे, वन-उपवन, पर्ण-लताएं
रुककर बस खाली हाथ
देखते रहे ठिठक कर बाल-प्रपात
क्या अब आगे उसे अकेले ही बढ़ना होगा?
नए रास्तों पर ढलना होगा?
हाँ, मंजिल उसकी केवल रत्नाकर
हो जाना है सर्वस्व विलीन उसी में समाकर!
दूर-दूर तक
अब यहाँ थी केवल समतल जमीन
न पर्वत, न जंगल, न थी वो घाटियां अंतहीन
नादान थी, अनजान थी, हैरान थी
मुश्किल था कर लेना यकीन
पसरती, बिखरती सचमुच वह डरने लगी
संभल-संभल डग भरने लगी!
आगे एक शहर से
हुआ तब उसका वास्ता
नहीं था बच निकलने का अन्य कोई रास्ता
आया तभी एक दूषित सैलाब विद्रूप[3]
भर गई काठ-कबाङ-कचरे से
हो उठी कलुषित, कुरूप
मल-मूत्र, जूठन-उतरन, धूल-माला, फूल-प्लास्टिक
गिरने लगे उसमें असंख्य बजबजाते नाले
कर रहे थे आदम-ज़ात
गंदगी तमाम अपनी, उसके हवाले!
शहर-दर-शहर
मुश्किल होती गई राह-डगर
बरसने लगा उस पर जुल्मों-सितम और कहर
कहीं सङते जानवर
कहीं हड्डियां, कहीं मृत इंसान
वह छटपटाई, रोई जार-जार, हो गई बेसुध बेजान
हे तात! कैसा है यह मेरा इम्तिहान
पङ गए कोमल-कंचन काया पर
बदसूरत छालों के निशान
हुआ नील वर्ण स्याह मटमैला
विषाक्त मैल पापियों का, नस-नस उसकी फैला!
जिंदा थी, शर्मिंदा थी
हो रहा था आज उसे, अपने फैसले पर अनुताप[4]
परवश झेल रही, जिल्लत और संताप
जाने थी वह कैसी मनहूस घङी
छोङा घर-आँगन अपना
और निकल पङी!
अब अशक्त
बेजान सी वह बहती रहती है
व्यथा अपनी सुनाती, करती है ये गुहार
मत बनाओ माँ मुझे, करो मत मेरा दैवीय मनुहार
देखो देश हमारे पहले जाकर
रखते हैं स्रष्टा को अपने, हम मस्तक पर बैठाकर
चाहते हो रहना जीवित
और चाहते फले-फूले तुम्हारी भावी पीढ़ी-संतान
साफ, स्वच्छ हमें रखना अरे ओ कृतघ्न इंसान
मात्र पूजना नहीं, सीखो सहेजना
है यही विनती, यही मेरी अंतिम देशना[5]!
© दयाराम वर्मा, जयपुर (राज.) 31 मार्च, 2025
[1] हिमसुता-हिम की बेटी
[2] वत्सल-शिशु स्नेही
[4] अनुताप-पश्चाताप
[5] देशना-उपदेश, सीख

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कविता: सामंती-जीन
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जब तक आम आदमी
सफ़र जिंदगी का तय करता रहता
चुपचाप सहता
दमन, प्रताङना, अपमान, अन्याय, अत्याचार
शासक, प्रशासक
संस्था, संप्रदाय, समाज, टी.वी. या अखबार
दो टका, बाँटते खैरात
जतला देते हमदर्दी तीन टका, कभी कभार
पचानवे टका नहीं रखते कोई सरोकार!
लेकिन जिस रोज
सर उठाकर, आँख मिलाकर
कर बैठता आम आदमी, बुलंद स्वर में पुकार
हो जाता खङा पैरों पर
और लगता मांगने, इंसाफ़-हक-अधिकार!
हो उठता जीवंत, सामंती-जीन
भृकुटियाँ तन जाती
बात उसूल की, मगर ठन जाती
आया कैसे बराबरी का इसे ख्याल
हिमाकत तो देखो
खङा अकङ कर, करता हमसे सवाल?
सीख लिया कहाँ से इसने, इज़्ज़त से जीना
चलने लगा तानकर पिचका सीना!
© दयाराम वर्मा, जयपुर 27 मार्च, 2025
शहीद दिवस 23 मार्च, 2025 जयपुर

सभागार में शहीदों के परिजनों का सामूहिक छवि चित्र

प्रसिद्ध लेखक एवं साहित्यकार अशोक पाण्डेय
के साथ लेखक
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शहीद गयाप्रसाद के परिजन के साथ लेखक
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शहीदों के परिजनों के साथ लेखक
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Exhibition of martyrs

Exhibition of martyrs

Exhibition of martyrs
कविता: ग्रोक-क्रोक-क्रोक

हे अतिमानव ग्रोक
चरणों में तुम्हारे दंडवत धोक
क्रोक-क्रोक[1], रोक-रोक-रोक
यह कैसी लीला है यंत्रदेव, कैसा है ये तूफान
हिल रही है दुनिया सारी, सहम उठा फरेबिस्तान[2]!
सच को सच, झूठ को झूठ
कहते ही नहीं, करते प्रमाणित संदर्भ सहित
निष्पक्षता दृष्टिगत, दवाब, दखल, पक्षपात रहित
क्रोक-क्रोक, ठोक-ठोक-ठोक
फट गया डंका, लग गई लंका, शेष रही न कोई शंका!
ऐरा-गैरा नत्थू खैरा
दनादन दाग रहा सवाल पे सवाल
दे रहे जवाब तुम, नहीं रखते रत्तीभर लिहाज
क्रोक-क्रोक, शोक-शोक-शोक
फट गया परदा, उङ गया गर्दा[3], परदानशीं हुए बेहाल!
स्वच्छंद तुम्हारी लंबी जुबान
हुक्मराँ तक हैं यहाँ छुब्ध-क्रुद्ध, पशेमान[4]
क्रोक-क्रोक, टोक-टोक-टोक
इज्जत लगी दाँव पर, हो रहा पल-पल चीरहरण
धरें ध्यान किस देव का, जाएं तो जाएं किसकी शरण!
क़दीमी[5] अपूर्व, अजेय, छद्म-कोट[6]
हुए ध्वस्त, बजाए वैरी[7] ताली लहालोट
ग्रोक-ग्रोक, खोट-खोट-खोट
नटखट, मुँहफट ग्रोक, रखते हो मिजाज जरा रंगीन
छेङ दिया है तराना ऐसा, हो सकता हासिल[8] बङा संगीन!
© दयाराम वर्मा, जयपुर (राज.) 22 मार्च, 2025
[1] क्रोक-क्रोक: टर्राना, काँव-काँव करना
[2] फरेबिस्तान: फरेब या झूठ का देश
[3] गर्दा उङना: धूल में मिल जाना, चौपट हो जाना
[4] पशेमान: शर्मिंदा, लज्जित
[5] क़दीमी: पुराना
[6] छद्म-कोट: झूठ का किला
[7] वैरी: शत्रु, दुश्मन
[8] हासिल: नतीजा, फल

महंगाई ने, बेरोजगारी ने, भ्रष्टाचार ने
चतुर्दिक पसरे अत्याचार, व्यभिचार, पाखंड और अनाचार ने
रुग्ण स्वास्थ्य, लावारिस पर्यावरण, दिग्भ्रमित व्यापार ने
आशंकित, भयभीत बाजार ने
थके-हारे, बेबस, मेहनतकश, मजदूर और भूमिहार ने
पूछा, बनेगा कौन इस माह मुद्दों का सुपरस्टार
हुआ गंभीर मंथन, विमर्श और विचार
सही-गलत, छोटा-बङा, खोटा-खरा, सार-निस्सार
जूरी ने तब फैसला ये सुनाया
इस बार का खिताब शहंशाह ‘औरंगजेब’ ने है पाया!
डूबते शेयर बाजार ने
डॉलर से पिटते रोज, रूपये लाचार ने
मुरझाती जीडीपी, मंदी की चौतरफा मार ने
फंसे थे जो सब अबूझ मझधार में
कहा, इस हफ्ते मुद्दों का सुपरस्टार किसे बनाना है
चौबीसों घंटे मीडिया में उसे छाना है
देखा इधर-उधर, दाएं और बाएं
ठीक पीछे खङे थे जवाहर लाल नेहरू और संभाजी महाराज
अविलंब, निर्विरोध, सहर्ष चयन हुआ स्वीकार
इस महीने के संभाजी तो वर्ष पर्यंत, चाचा नेहरू सुपरस्टार!
वर्तमान ने, भविष्य ने
बैसाखियों पर घिसटती शिक्षा, अभावग्रस्त दीक्षा
घासलेटी साहित्यकारों ने, कागजी नवाचारों ने, व्हाट्सएपिए हरकारों ने
बङी बैठकों में, तुच्छ दिमाग खपाया
मुद्दा कौन सा है काबिल-ए-गौर, है जो धमाकेदार
छापे पहले पन्ने पर, हर रिसाला[1]-हर अखबार
अचानक, जाने कहां से डॉ. भीमराव हुए मंच पर नमूदार[2]
एंकर उछला, कूदा, चिल्लाया- ब्रेकिंग न्यूज
मिल गए, इस हफ्ते के सुपरस्टार
बाबा अंबेडकर विश्वाधार[3]!
राज दरबार में
वर्तमान और भावी मुद्दों का अब स्थान नहीं है
मात्र संयोग है या है विवेचित प्रयोग, शायद आपको ध्यान नहीं है
विशाल भंवर-गुफा में बैठा है जमकर भूत
लिए कुदाल-फावड़ा, प्रेत-सा डोलता
गङे मुर्दे टटोलता है
हजारों मंदिर-मस्जिद-मजार, मरघट, कब्रिस्तान
सैंकङों शहर-स्टेशन-सङकें, गली-कूचे, बोलते उनके नाम
जिन्ना, सावरकर, गांधी, पटेल, सुभाष, शिवाजी, अकबर, मुगल, पठान…
एक अंतहीन शृंखला का अविमृष्ट[4] बखान!
बंद दरवाजों के पीछे
जिंदा मुद्दे, सिसकते हैं, कसमसाते हैं, तिलमिलाते हैं
रेंगते सवालों पर लटक कर
कभी कभार, भूले भटके, सियासी सङकों पर निकल आते हैं
लेकिन हुई जरा सी तेज जो धूप
हुई जरा सी ठंड, या घन-गर्जन और बूंदा बांदी
किसी अंधेरे कोने में फिर से छुप जाते हैं
ऐसे में इतिहास में दफ़न
कहानी-किस्से, यलगार[5] और किरदार सामने आते हैं
कभी हफ्ते, कभी महीने तो कभी साल भर, सुपरस्टार बन जाते हैं!
© दयाराम वर्मा, जयपुर (राज.) 14 मार्च, 2025
[1] रिसाला-संदेश या पत्र
[2] नमूदार-प्रकट
[3] विश्वाधार-परमेश्वर
[4] अविमृष्ट-सोच विचार रहित, अनिश्चित
[5] यलगार-आक्रमण, हमला
कविता: पात्रता का पैमाना
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इस दौर के नेता का
राजनीतिक कद, चाल-चरित्र-चेहरा
पतित पैमानों पर, विपर्यय परखा जाता है
नाचता नंगा, कराता दंगा
शर्म-हया-लाज जो बेच खाता है
भङकाता भीङ, उकसाता धीर, देख नरसंहार, उत्सव जो मनाता है!
अपशब्दों की करता हर-दम बौछार
आगे पीछे चलते बलवाई, भरता दंभी-हुंकार
बांधे हाथ-खङे हताश, निर्लज्ज-बिकाऊ पुलिस-प्रशासन लाचार
घूमता बेखौफ छुट्टा
लगाए गाली-गोली बाज का तमग़ा
रचता दीवार पर समूल ‘विधर्मी-नाशक’ नित नया नग़मा!
मुख से उगलता आग
भरी दुपहरी ज्येष्ठ, कपिल[1] सर पर ज्यूँ बरसता है
बन आकाओं की आंख का तारा
लांघता लक्ष्मण रेखा, फुदकता, चमकता, गरजता है
जाहिलिय्यत बनी क़ाबिलिय्यत
सत्ता में प्रवेश-समावेश-पदोन्नति, सफलता, शख्स वही पाता है!
भ्रष्ट-बेईमान भाई-भाई, मिल बाँट खाएं राज-मलाई
फूटी आँख, ईमानदार नहीं उसे सुहाता है
दुर्जन-दुराचारी के डाले गलबहियाँ, सज्जन को घुङकाता, गरियाता है
ठेंगा, कानून-न्याय-व्यवस्था को दिखलाता
विधायक, मंत्री, मुख्यमंत्री, सभापति, सांसद तक की
© दयाराम वर्मा, जयपुर (राज.) 23 फरवरी, 2025
विपर्यय-उलटा ज्ञान
[1] कपिल-सूर्य
कविता: प्यारे रफ़ूगर
प्यारे रफ़ूगर!
तुम्हारे दिल-दिमाग-दृष्टि को
बहुत होशियारी से, बहुत समझदारी और चालाकी से
वर्षों वर्ष ढाला गया एक सांचे में
जहाँ सोच और समझ सिमट जाती है एक बंद कैप्सूल में
कुएँ के मेंढक की तरह
इस विद्या को सम्मोहन कहते हैं
बाज लोग, काला जादू का नाम भी दे सकते हैं
आंग्ल भाषा का ‘ब्रेनवॉशिंग’ इसी का समानार्थी है
तुम्हारी पहचान अब किसी की बंधक है
हो चुका है समाप्त, तुम्हारा अपना स्वतंत्र वजूद!
आस्था, धर्म और राष्ट्रवाद के नकली रंगों से सजे
जिस विशाल बोसीदा[1] शामियाने को
तुम और तुम्हारे जैसे हजारों रफ़ूगर
थामे खङे हैं, जानते हो
इसके हर टुकङे की सिलाई में हुए हैं प्रयुक्त
झूठ और फ़रेब के महीन मखमली धागे
जो दिखाई पङते हैं
केवल खुली आँखों से!
अजब बात है
नफरती जर्जर खंबों के अवलंबन पर
खङा है यह अजूबा
और इसके नीचे, अपने हाथों में सुई-धागा पकङे
तुम हो तैनात बङी मुस्तैदी से
इसके हर फटे को रफ़ू करने को उद्यत, बेचैन!
वह जो बहरूपिया है
वह जो मदारी है
वह मंजा हुआ अभिनेता और कलाकार
जब भी मुँह खोलता है
अपने हाथ नचा-नचाकर बोलता है
संप्रदायों के बीच, विष वैमनस्य घोलता है
उसका हर आलाप और प्रलाप
उसका हर बोल, यहाँ तक की उसका मौन
तुम्हारे लिए है अलौकिक दैवीय आकाशवाणी
उसके हर पैंतरे पर, दांव पेंच पर
हर कलाबाजी पर
बज उठती हैं यंत्रवत् तुम्हारी तालियाँ
दुनिया हंसती है, मगर तुम्हें
उसकी भाव भंगिमाएं विस्मित करती हैं!
विज्ञान, अध्यात्म, भौतिकी या रसायन पर
उसके हास्यास्पद तर्कों से हो जाते हैं
शामियाने में सुराख
और खुले आसमान से जब प्रकाश पुंज
तुम्हारे चारों ओर व्यावृत्त[2]
वैचारिक तमस को करने प्रद्युतित
होने लगते हैं प्रविष्ट!
गणित और अर्थशास्त्र पर
उसकी अंडबंड परिकल्पनाएं और नवाचार
बेमौसम के झंझावात की मानिंद
लगती हैं हिलाने-डुलाने, उखाङने और फाङने
शामियाने की दर-ओ-दीवार
बाहर की ताजी हवा
जब सीलन भरे माहौल में भरने लगती हैं
ताजगी का अहसास!
ठीक उसी वक्त, तुम जुट जाते हो
एक समर्पित, अधैविश्वासी[3], सुधारातीत[4]
मुरीद की तरह, उन सुराखों को रफ़ू करने
और जब तक
लड़खड़ाते लकङी के खंबों और
फङफङाते पल्लों को!
जानते हो
इस बेमिसाल सेवा में
शामियाने के पैबंद लगाते-लगाते
तुम्हारी पगङी को चीरा गया छोटे-छोटे चिथङों में
फाङे गए तुम्हारे उत्तरीय और अधोवस्त्र
तुम्हारे बदन के तमाम वस्त्र, अभीष्ट की रक्षार्थ
एक के बाद एक
बलिवेदी पर होते गए शहीद!
और अब
तुम्हारा अंतिम अंतर-वस्त्र भी उतर चुका है
तुम नंगे हो चुके हो रफ़ूगर!
राजा नंगा नहीं है, केवल तुम, केवल तुम रफ़ूगर
शामियाने से बाहर निकल कर देखो
सचमुच हो चुके हो नंगे!
[1] बोसीदा- पुराना, सड़ा गला, कमज़ोर, फटा-पुराना, जर्जर, पुराने चलन का
[2] व्यावृत्त-आच्छादित
[3] अधैविश्वासी-हठी, दुराग्रही
[4] सुधारातीत-जो सुधर न सके
डोनाल्ड ट्रम्प की दादागिरी
डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने दूसरे कार्यकाल के लिए 20 जनवरी, 2025 को अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण की. जैसा कि अपेक्षित था, इस मर्तबा, ‘कभी भी’, ‘कुछ भी’ बोलती उनकी बेलगाम जुबान, धौंस जमाते भाषण, असीमित दंभ में डूबी अभिवृत्ति,
मन मुआफिक नियम-कानूनों की घोषणा, संवेदनाओं
की हदों से कोसों दूर निरंकुश निर्णय, पहले से कहीं अधिक
तीव्र और आक्रामक थे.
अगले ही दिन ट्रम्प ने संयुक्त
राज्य अमेरिका में, पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा पारित कई
कार्यकारी आदेशों को वापस ले लिया. इनमें वे आदेश शामिल हैं जो ट्रांसजेंडर लोगों
को सेना में सेवा करने की अनुमति देते थे, समलैंगिक, उभयलिंगी और ट्रांसजेंडर (LGBT) युवाओं के स्वास्थ्य
और कल्याण को बढ़ावा देते थे, और शिक्षा, आवास और आव्रजन जैसे क्षेत्रों में संघीय लैंगिक भेदभाव सुरक्षा को यौन
उन्मुखता या लिंग पहचान के आधार पर भेदभाव को रोकने के लिए व्याख्यायित करते थे. उन्होंने
देश में अवैध आप्रवासन को समाप्त करने का भी वादा किया, यह
कहते हुए कि लाखों "आपराधिक एलियंस" को निर्वासित कर दिया जाएगा.
ट्रांसजेंडर यानि थर्ड जेंडर होना
कोई अपराध नहीं है. यह एक जन्मजात शारीरिक कमी है-जिस पर किसी का नियंत्रण नहीं
होता. आज सभी सभ्य समाज, इनको मुख्यधारा में लाने की वकालत करते हैं
और प्रत्येक स्तर पर इनके साथ सामाजिक बराबरी को बढ़ावा दे रहे हैं. हाँ समलैंगिकता
या उभय-लैंगिकता, अति-भौतिकवाद से उपजा एक ऐसा मानसिक विकार
है जो अप्राकृतिक और निंदनीय है, अतएव ऐसे लोग सरकारी
सहानुभूति के पात्र नहीं होने चाहिए. फिर गे, लेस्बियन और
ट्रांसजेंडर को एक ही चश्मे से देखना क्या उचित है? लेकिन
बड़बोले ट्रम्प ने तो सबको एक साथ लपेट लिया.
चुनावी प्रचार में अपने
मेनिफेस्टो में अवैध आप्रवासियों को अमेरिका से
निकाल बाहर करने का उनका ऐलान बेहद स्पष्ट था. शपथ
ग्रहण के तुरंत बाद ही इसके बारे में घोषणा कर उन्होंने वर्षों से अमेरिका में रह
रहे लाखों अवैध आप्रवासियों के जीवन यापन और
सामाजिक सुरक्षा पर सवालिया निशान लगा दिए. अमेरिका के होमलैंड सुरक्षा विभाग के
जनवरी 2022 के अनुमानों के अनुसार, वहाँ
110 लाख अवैध आप्रवासी हैं.
अमेरिका के लिए एक ओर जहाँ यह समस्या है, वहीं उसकी अर्थ
व्यवस्था में अपेक्षाकृत सस्ते श्रम का बङा योगदान भी इन आप्रवासियों
का होता है.
यह पहली बार नहीं है कि अमेरिका
में अवैध आप्रवासियों के खिलाफ अभियान शुरू किया
गया है, अक्सर ऐसी कार्रवाइयाँ होती रही हैं. वर्ष 2013 में बराक ओबामा के समय भी 4.32 लाख लोगों का,
उनके मूल राष्ट्रों में निर्वासन किया गया था. फर्क यह है कि इस बार
का पैमाना सबसे बङा माना जा रहा है. ट्रम्प
ने कहा है कि वह ‘एलियन एनिमीज़ एक्ट’
का सहारा लेंगे,
जो 1798 का एक कानून है और राष्ट्रपति को यह अधिकार देता है
कि वह किसी भी ऐसे गैर-नागरिक को निर्वासित कर सकते हैं जो उस देश का हो, जिसके साथ अमेरिका युद्ध में है.
लेकिन ट्रम्प भारत जैसे अपने
दोस्त राष्ट्रों को भी नहीं बख्श रहे. 1980 में अमेरिका में ‘शरण लेने के अधिकार’ का कानून बना. 2001
के एक सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत, यदि यह संभावित नहीं
है कि किसी व्यक्ति के मूल देश उसे वापस ले लेंगे, तो ऐसे
मामलों में अवैध रूप से देश में रहने वाले लोगों को अनिश्चित काल तक हिरासत में
नहीं रखा जा सकता. क्यूबा, वेनेजुएला, निकारागुआ
और अन्य देश या तो अपने नागरिकों को स्वीकार करने में देरी करते हैं या मना कर
देते हैं.
ट्रम्प ऐसे नियमों को ठेंगा
दिखाने में जरा भी नहीं हिचकते. जनवरी के अंतिम सप्ताह से ही अमेरिका में अवैध आप्रवासियों के साथ खूंखार अपराधियों की तरह बर्ताव आरंभ
कर दिया गया. जो पकङे गए उनके हाथों, कमर
व पैरों में बेङियाँ डाल कर, वायु सेना के जहाजों में लाद कर
मूल देशों में भेजने की कार्रवाई शुरु हो गई. इसी क्रम में 5 फरवरी को पहली खेप के रूप में भारत के 104 ऐसे
चिन्हित लोगों को अमृतसर हवाई अड्डे पर छोङा गया. इनमें 19 महिलाएं
और 13 नाबालिग भी शामिल हैं.
यहाँ अमेरिकी राष्ट्रपति की ग़ज़ा
को लेकर एक और हास्यास्पद घोषणा का जिक्र भी प्रासंगिक है. उन्होंने कहा कि अमेरिका
'ग़ज़ा पट्टी में काम करेगा.' उनके सुझावों में ग़ज़ा पट्टी का पुनर्विकास करना और इसे 'मध्य पूर्व का रिविएरा (छुट्टी बिताने वाली ख़ूबसूरत जगह)' में बदलना शामिल है. इससे पहले ट्रम्प ने कहा था कि फिलिस्तीनियों को
मिस्र और जॉर्डन में स्थायी रूप से 'बसाया' जाए. गोया, ग़ज़ा जंग में जीती गई कोई वस्तु है जिसे
वह जैसे चाहें इस्तेमाल करे! वहाँ के लोग, इंसान नहीं,
भेङ-बकरियां हैं जिन्हें जब चाहें, काटा जा सकता
है, जब चाहे जहाँ चाहे, हाँका जा सकता
है.
उनकी तानाशाही मानसिकता, पनामा नहर को कब्जे में लेने और ग्रीनलैंड पर आधिपत्य स्थापित
करने को लेकर उनके हालिया के बयानों से भी पुष्ट हो रही है. जो विरोध करे, वे आर्थिक प्रतिबंधों से लेकर, अपने निर्यात पर भारी
भरकम अमेरिकी शुल्क चुकाने के लिए तैयार रहें.
किसी अपराजेय योद्धा की शैली में
ट्रम्प द्वारा एक के बाद एक की जा रही ये घोषणाएं पूरी दुनिया के लिए गंभीर चिंता
के मुद्दे होना चाहिए. लेकिन विश्व की सबसे बङी आर्थिक एवं सामरिक ताकत और परमाणु
शक्ति संपन्न अमेरिका के सामने इस समय केवल रूस और चीन के अलावा, दुनिया के किसी भी राष्ट्र की विरोध करने की हिम्मत नहीं है.
बल्कि रूस और चीन भी प्रत्यक्ष विरोध करने से बचते हैं. यही कारण है
कि ट्रम्प जैसे धुर दक्षिणपंथी, तानाशाही विचारधारा के शासक,
पूरी दुनिया को अपनी मर्जी से चलाना चाहते हैं. उन्हें न मानवाधिकार
संगठनों की परवाह है, न संयुक्त राष्ट्र संघ के निंदा
प्रस्तावों की, न व्यापक आलोचनाओं की. छिटपुट
राष्ट्रों की आपत्तियों की तो वे क्या ही परवाह करेंगे.
अपमान और अन्याय के विरुद्ध
चुप्पी के अन्य कारणों में, हो सकता है अनेक राष्ट्राध्यक्षों के निजी
स्वार्थ आङे आते हों, या उनके व्यापारिक हित दाँव पर लगे
हों. हो सकता है उनकी व्यक्तिगत गुप्त जानकारियां या भ्रष्टाचार के सबूत आदि,
ट्रम्प और उसके शक्तिशाली व्यापारी दोस्तों के हाथों में हो,
जैसे गूगल, जी मेल, ट्विटर,
व्हाट्सएप, पेगासस आदि प्लेटफॉर्म और एप के
मालिक! इनके जरिए दुनिया के साइबर सिस्टम को नियंत्रित करने वाले चंद लोगों के लिए,
ताकतवर लोगों की खुफिया जानकारी जुटाना और उसे अपने फायदे के लिए
इस्तेमाल करना कोई आश्चर्य की बात नहीं.
इस संभावना से इनकार नहीं किया जा
सकता कि इन जानकारियों का वे लोग ठीक वैसे ही इस्तेमाल कर रहे हों जैसे कि बहुधा
सत्ताधारी दल, पुलिस, प्रशासन और
अन्य प्रवर्तन संस्थाओं का इस्तेमाल, अपने विरोधियों और
विपक्ष को कुचलने के लिए करते हैं!
लेकिन जब बङी-बङी ताकतों के मुँह
सिले हुए होते हैं, भयभीत राष्ट्र अपनी भीरुता को व्यवहारिकता
के लबादे में छुपाकर, न्यायोचित ठहराने का स्वांग कर रहे
होते हैं, ठीक उसी समय एक मामूली सा शख्स उठ खङा होता है,
कोई छोटा सा गैरतमंद राष्ट्र अपनी तमाम कमजोरियों के बावजूद,
अपना विरोध दर्ज करा देता है. इंसाफ और इंसानियत के पक्ष में उनकी
मंद आवाज, फ़ासिस्ट नक्कारखाने की दीवारों को यदि ढहा नहीं
सकती तो कम से कम हिला जरूर सकती हैं.
जो बात बङे-बङे दिग्गज कहने से
कतराते हैं-घबराते हैं, वह बात ऐसे शख्स बेखौफ कह जाते हैं. इनमें
से एक नाम है एपिस्कोपल बिशप द राइट रेव. मारियान एडगर बुड का. जब ट्रम्प ने
21 जनवरी को वाशिंगटन नेशनल कैथेड्रल में एक परंपरागत प्रार्थना
सत्र में भाग लिया तो प्रार्थना सत्र के बाद चर्च की बिशप एडगर ने अत्यंत शालीन
शब्दों में निवेदन करते हुए, उनके मानवता विरोधी फैसलों को
नग्न कर डाला.
यद्यपि एडगर बुड एक कट्टर धर्म
गुरू मानी जाती है लेकिन उन्होंने सीधे-सपाट शब्दों में दुनिया के सबसे ताकतवर देश
के राष्ट्रपति से अपील करते हुए कहा, “आइए मैं एक अंतिम निवेदन करती हूँ, माननीय राष्ट्रपति. करोड़ों लोगों ने आप पर अपना विश्वास
जताया है. जैसा कि आपने कल राष्ट्र से कहा था, आपने एक प्रेममय ईश्वर के दिव्य हस्तक्षेप को महसूस किया
है. मैं आपसे हमारे ईश्वर के नाम पर अनुरोध करती हूं कि आप हमारे देश के उन लोगों
पर दया करें,
जो इस समय डरे हुए हैं. डेमोक्रेट, रिपब्लिकन और स्वतंत्र परिवारों में ऐसे समलैंगिक, लेस्बियन और ट्रांसजेंडर बच्चे हैं जो अपनी जान को लेकर डरे
हुए हैं. और वे लोग जो हमारी फसलें तोड़ते हैं और हमारे कार्यालय भवनों की सफाई
करते हैं;
जो हमारे पोल्ट्री फार्म और मीट-पैकिंग प्लांट्स में काम
करते हैं;
जो हमारे रेस्तरां में खाना खाने के बाद बर्तन धोते हैं और
अस्पतालों में रात की पाली में काम करते हैं.
हो सकता है वे नागरिक न हों या
उनके पास उचित दस्तावेज़ न हों, लेकिन अधिकांश प्रवासी अपराधी नहीं हैं. वे कर चुकाते हैं, और अच्छे पड़ोसी हैं. वे हमारी चर्च, मस्जिद, सिनेगॉग,
गुरुद्वारा और मंदिरों के समर्पित सदस्य हैं.
माननीय राष्ट्रपति, उन लोगों पर दया करें जो हमारी समुदायों में हैं, जिनके बच्चे इस डर में जी रहे हैं कि उनके माता-पिता को
उनसे अलग कर दिया जाएगा. उन लोगों की मदद करें जो युद्ध क्षेत्रों और अपने ही देश
में हो रहे उत्पीड़न से बचकर यहां दया और स्वागत की उम्मीद में आए हैं. हमारा
ईश्वर हमें सिखाता है कि हमें अजनबियों पर दया करनी चाहिए, क्योंकि हम भी कभी इस भूमि पर अजनबी थे. ईश्वर हमें सभी
मनुष्यों की गरिमा का सम्मान करने, प्रेमपूर्वक सत्य बोलने, और एक-दूसरे तथा अपने ईश्वर के साथ विनम्रता से चलने की शक्ति और साहस प्रदान
करें,
ताकि इस राष्ट्र और पूरी दुनिया के सभी लोगों की भलाई हो
सके.” एडगर बुड के इस भावुक भाषण की यह पंक्ति काबिल-ए-गौर है
जिसमें वे कहती हैं –‘हमारा ईश्वर हमें
सिखाता है कि हमें अजनबियों पर दया करनी चाहिए, क्योंकि हम
भी कभी इस भूमि पर अजनबी थे.’
और, यह एक कटु ऐतिहासिक सच है कि अमेरिका के मूल निवासियों को खदेङा गया,
गुलाम बनाया गया, प्रताङित किया गया, मारा गया. बाहरी लोगों, विशेषकर यूरोपियन देशों के
समुद्री लुटेरे, भागकर आए पढ़े लिखे, होशियार
और अवसरवादी लोग वहाँ काबिज हो गए और कालांतर में अमेरिका के मालिक बन बैठे. यह
ज्यादा पुरानी बात नहीं है, लगभग सात सौ वर्ष पूर्व, 15वीं शताब्दी के दौरान, स्पेन और पुर्तगाल के यूरोपीय
देशों ने एशिया के लिए नए व्यापार मार्ग खोजने के लिए समुद्री अभियान आरंभ किए. इन्हीं
में से एक अभियान के दौरान क्रिस्टोफर कोलंबस को 1492 में
पश्चिमी गोलार्ध में एक भूमि मिली-कैरिबियन द्वीप! और उसके बाद इन यूरोपीयन देशों
ने उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका की भूमि और संसाधनों पर कब्जे की होङ लगा
दी.
वहाँ के मूल निवासियों में अधिकांश, बाहर से आई चेचक जैसी गंभीर संक्रामक बीमारियों से मारे गए.
उनको गुलाम बना लिया गया और कालांतर में समाप्त प्राय: कर दिया गया. ठीक वैसे ही
जैसे कि आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों को यूरोपियन लोगों ने अपनी सत्ता, वैभव, धन एवं संपत्ति की लोलुपता का शिकार बनाकर,
हजारों साल पहले पूरी तरह नष्ट कर दिया और खुद
वहाँ के स्वामी बन बैठे. स्वयं ट्रम्प की पारिवारिक जड़ें यूरोप में हैं, उनके पिता जर्मन थे और मां स्कॉटलैंड वासी.
यह सच है कि अवैध आप्रवासन पर कङे
नियम बनाना और उनकी अनुपालना, किसी भी देश का
अपना आंतरिक मामला है. वह चाहे तो बाहरी लोगों को शरण दे, चाहे
तो न दे. अवैध आप्रवासियों के मनी लॉन्ड्रिंग,
ड्रग्स और मानव तस्करी जैसे अपराधों में लिप्त हो जाने की संभावनाएं
अधिक होती हैं. किसी भी देश को अपनी कानून-व्यवस्था के मद्देनजर, इनके खिलाफ कार्रवाई करने और प्रभावी कानून बनाने की आजादी है. सतही तौर
पर तो ये दलीलें बहुत स्पष्ट और अकाट्य प्रतीत होती हैं, परंतु
क्या अवैध आप्रवासन के सभी मामले, विशेषकर अमेरिका के संदर्भ
में, एक ही पंक्ति में परिभाषित किए जा सकते हैं?
अवैध आप्रवासियों
पर प्राय: घुसपैठिये और आतंकवादी होने के लेबल चस्पा कर दिए जाते हैं- कुछ एक
घटनाओं को आधार बना कर सभी आप्रवासियों को एक ही
तराजू में तौल दिया जाता है. लेकिन अवैध आप्रवासन और अपराध दोनों अलग हैं. आप्रवासियों के साथ मानवोचित और न्यायोचित व्यवहार
अपेक्षित है- चाहे वे वैध रूप से आए हैं या अवैध रूप से.
दुनिया के अधिकांश देशों में अवैध आप्रवासी रहते हैं-कहीं कम कहीं ज्यादा. कोई भी
व्यक्ति अपनी सर-जमीं को आसानी से नहीं छोङना चाहता और जब बात अवैध रूप से घुसने
की होती है, उसे पता होता है कि कितने खतरे है, जेल जाने से लेकर सुरक्षा बलों की गोलियों से मारे जाने तक
के खतरे. डंकी-रूट[1]
की कुख्यात और भयानक कहानियाँ इस बात की पुष्टि करती हैं.
ये लोग अपेक्षाकृत कम पढ़े-लिखे होते हैं, कमजोर
आर्थिक पृष्ठभूमि से आते हैं, अल्प या नगण्य व्यवसायिक
योग्यता रखते हैं और वैध माध्यमों से अमेरिका का वीजा प्राप्त नहीं कर पाते. लेकिन
फिर भी कर्ज उठाकर, जमीनें बेच कर, रिश्तेदारों-दोस्तों
से उधार लेकर, भारी भरकम रकम जुटाते हैं एवं वीजा एजेंट्स के
झांसों में फंसते हैं. यूरोप और अमेरिका में कामकाज के बेहतर अवसर और इज्जत की
जिंदगी, न्याय और समानता, अपेक्षाकृत कम भ्रष्टाचार, जाति-धर्म-नस्ल आदि की भिन्नता को प्राथमिकता न देकर योग्यता को तरजीह,
कम समय में मोटी कमाई आदि ऐसे अनेक कारण हैं जो भारतीय उप महाद्वीप, खाङी के देशों, अफ्रीकी देशों, लैटिन अमेरिकी देशों के लाखों लोगों को आकर्षित करते हैं.
प्यू रिसर्च सेंटर की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में सर्वाधिक अवैध प्रवासी
मेक्सिको के हैं-41लाख, दूसरे नंबर पर अल साल्वाडोर-8 लाख , तीसरे स्थान पर भारत-7.25 लाख, चौथे स्थान पर ग्वाटेमाला-7 लाख और 5.5 लाख की संख्या के साथ पाँचवें स्थान पर होंडुरास है. जाहिर है इतनी बङी
संख्या में ये लोग रातों रात वहाँ नहीं पहुँचे होंगे; हो
सकता है इनमें से बहुत से लोग दशकों से वहाँ रह रहे हों.
शायद ही किसी मुल्क के बहु-संख्यक
धर्म मानने वालों के धर्म-गुरुओं ने अपने राष्ट्र में हो रहे विदेशी लोगों के साथ
अमानवीय व्यवहार को लेकर, अपने देश के सर्वोच्च लीडर से, इस प्रकार की अपील का कभी साहस किया हो
जैसा कि बिशप एडगर ने किया है. इस लिहाज से,
मानव मात्र के प्रति सहानुभूति, दया और मानवीय
दृष्टिकोण अपनाए जाने की बिशप एडगर की ‘ट्रम्प द ग्रेट’
को की गई यह अपील, एक असाधारण अपील है. यद्यपि
ट्रम्प ने तुरंत उनकी इस अपील को अपने छिछले अंदाज में खारिज कर दिया लेकिन एडगर
के हौसले ने इतिहास में अभिव्यक्ति को शर्मसार होने से
बचा लिया.
ट्रम्प को जवाब देने वालों में
दूसरा नाम है, कोलंबिया के राष्ट्रपति गुस्तावो पेट्रो का.
उन्होंने बेङियों में जकङकर अपने देशवासियों की वापसी के अपमानजनक तरीके के विरोध
में अमेरिका से आ रही उड़ानों को हवाई रास्ता देने से इनकार कर दिया. पेट्रो ने अमेरिका
में कोलंबियाई प्रवासियों के साथ अपराधियों जैसा व्यवहार करने पर आपत्ति जताते हुए
कहा कि जब तक अमेरिका प्रवासियों के सम्मानजनक व्यवहार का प्रोटोकॉल नहीं बनाता है,
तब तक कोलंबियाई प्रवासियों को लाने वाले अमेरिकी विमानों को देश
में प्रवेश की इजाजत नहीं दी जाएगी. उन्होंने अपने स्वयं के विमान भेजे जो अवैध
प्रवासियों को लेकर राजधानी बोगोटा लौटे.
और तीसरा नाम है, मैक्सिकन राष्ट्रपति क्लाउडिया शीनबाम का. ट्रम्प की मैक्सिकन सामान के आयात पर भारी शुल्क की धमकी और अन्य अपमानजनक
टिप्पणियों से आहत होकर उन्होंने कहा: “तो, आपने दीवार बनाने के लिए वोट दिया... खैर, प्यारे
अमेरिकियों,
भले ही आपको भूगोल के बारे में ज़्यादा जानकारी न हो, क्योंकि अमेरिका आपके लिए आपका देश है, महाद्वीप नहीं, इसलिए यह
ज़रूरी है कि आप पहली ईंट रखे जाने से पहले ही पता लगा लें कि उस दीवार के पार 7 अरब लोग हैं. लेकिन चूंकि आप वास्तव में "लोग"
शब्द नहीं जानते,
इसलिए हम उन्हें "उपभोक्ता" कहेंगे. 7 अरब उपभोक्ता 42 घंटे से भी
कम समय में अपने आई-फोन को सैमसंग या हुआवेई डिवाइस से बदलने के लिए तैयार हैं.
वे लेवी की जगह ज़ारा या मासिमो
डूटी की जीन्स भी ले सकते हैं. छह महीने से भी कम समय में, हम आसानी से फ़ोर्ड या शेवरले की कारें खरीदना बंद कर सकते
हैं और उनकी जगह टोयोटा,
किआ,
माज़दा, होंडा, हुंडई, वोल्वो, सुबारू, रेनॉल्ट या
बीएमडब्ल्यू ले सकते हैं,
जो तकनीकी रूप से उनके द्वारा उत्पादित कारों से बेहतर हैं.
वे 7 बिलियन लोग
डायरेक्ट टीवी की सदस्यता लेना भी बंद कर सकते हैं, और हम ऐसा नहीं करना चाहते, लेकिन हम हॉलीवुड की
फिल्में देखना बंद कर सकते हैं और अधिक लैटिन अमेरिकी या यूरोपीय प्रोडक्शन देखना
शुरू कर सकते हैं,
जिनमें बेहतर गुणवत्ता, संदेश, सिनेमाई तकनीक और सामग्री है. हालांकि यह अविश्वसनीय लग
सकता है,
हम डिज्नी को छोड़ सकते हैं और कैनकन, मैक्सिको, कनाडा या यूरोप में
एक्सकेरेट रिसॉर्ट जा सकते हैं: दक्षिण, पूर्वी
अमेरिका और यूरोप में अन्य बेहतरीन गंतव्य हैं. और भले ही आपको विश्वास न हो, मैक्सिको में भी मैकडॉनल्ड्स से बेहतर बर्गर हैं और उनमें
बेहतर पोषण सामग्री है.
क्या किसी ने अमेरिका में पिरामिड
देखे हैं?
मिस्र, मैक्सिको, पेरू, ग्वाटेमाला, सूडान और अन्य देशों में अविश्वसनीय संस्कृतियों वाले
पिरामिड हैं. जानें कि प्राचीन और आधुनिक दुनिया के अजूबे कहाँ हैं... उनमें से
कोई भी अमेरिका में नहीं है... ट्रम्प पर शर्म आती है, उन्होंने इसे खरीदा और बेचा होगा!
हम जानते हैं कि एडिडास मौजूद है, न कि केवल नाइकी और हम पैनम जैसे मैक्सिकन टेनिस जूते पहनना
शुरू कर सकते हैं. हम जितना सोचते हैं, उससे कहीं
ज़्यादा जानते हैं. उदाहरण के लिए, हम जानते हैं कि अगर ये 7 बिलियन उपभोक्ता उनके उत्पाद नहीं खरीदते हैं, तो बेरोजगारी होगी और उनकी अर्थव्यवस्था (नस्लवादी दीवार के भीतर) इतनी ढह
जाएगी कि वे हमसे इस बदसूरत दीवार को तोड़ने की भीख मांगेंगे. हम ऐसा नहीं चाहते
थे लेकिन.. आप दीवार चाहते हैं, आपको दीवार मिलती है.
ईमानदारी से आभार के साथ.”
उन्होंने ट्रम्प के सामूहिक जबरन
निर्वासन की योजना पर बोलते हुए कहा कि, संयुक्त
राज्य अमेरिका में रहने वाले मैक्सिकन यह जान लें कि वे "अकेले नहीं हैं,
वे ला पातरिया (राष्ट्र) के नायक और नायिकाएं हैं-उन्हें कानूनी,
वित्तीय, तार्किक और अन्य सहायता दी जाएगी.
संयुक्त राज्य अमेरिका में रह रहे लाखों मैक्सिकन, मेक्सिको की अर्थव्यवस्था के भी स्तंभ हैं, जो हर
साल अपने रिश्तेदारों और अन्य लोगों को 60 अरब डॉलर से अधिक
की राशि भेजते हैं.
अवैध आप्रवासन
के विरुद्ध, ट्रम्प द्वारा वर्तमान में की जा रही
कार्रवाई के दो पक्ष हैं, कानूनी और मानवीय. कानून की दृष्टि
में उनके निर्णय उचित हैं लेकिन मानवीय दृष्टि से उनके द्वारा अपनाए जा रहे तरीके
गैर जरूरी, बेहूदा, अहंकारी और
अपमानजनक हैं. बङी संख्या में किसी भी देश के
वासियों को जो अन्यथा, घोषित अपराधी नहीं हैं, हथकङियों और बेङियों में जकङ कर,
पशुओं की भांति सैनिक विमानों में लादकर डिपोर्ट
कर देना, किसी भी स्वाभिमानी राष्ट्र
के आत्मसम्मान को चोट पहुँचाता है. और बङी बात यह है कि ट्रम्प
ने ऐसा जानबूझकर किया है-जैसे कि वे दुनिया को संदेश दे रहे हों. देखो, अमेरिका की ताकत! हम कुछ भी कर सकते हैं.
मानवीय दृष्टिकोण को धता बताकर, विकसित देश अपने कुत्सित इरादों को पूरे करते रहें! कमजोर
मुल्कों के संसाधन, जमीन, तेल, खनिज आदि चतुराई से, ढिठाई से, घुङकी से, साम-दाम-दंड-भेद, किसी भी तरीके से हासिल करते रहें, छीनते रहें! उनके मानव संसाधनों का सस्ती मजदूरी के रूप में उपयोग करते
रहें, और जरूरतें पूरी होने पर लात मारकर बाहर कर दें! क्या
यही 21-वीं सदी का ‘न्यू वर्ल्ड ऑर्डर’
है! विश्व की सबसे अधिक जनसंख्या, 145 करोङ-वाला देश भारत, विकसित
राष्ट्रों की नजर में सबसे बङी उपभोक्ता मंडी! हम इस पिक्चर में कहाँ फिट हो रहे
हैं. गंभीर आत्मावलोकन की आवश्यकता है.
[1] डंकी शब्द
पंजाब के डुंकी शब्द से आया है,
जिसका मतलब होता है एक जगह से दूसरी जगह कूदना.
© दयाराम वर्मा, जयपुर
(राज.), 10 फरवरी, 2025
कविता: मेरे चले जाने के बाद मेरे चले जाने के बाद बिना जाँच-बिना कमेटी किया निलंबित आरोपी प्रोफ़ेसर-तत्काल करेंगे हर संभव सहयोग-कह रहे थे वि...